SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां * : सृजन और संहार होना नहीं मानता है। इसलिए जैनदर्शन में विश्व-कत्ता या संहर्ता के रूप में ईश्वर का कोई स्थान नहीं है। जैनदर्शन के अनुसार ईश्वर जगन्नियन्ता और सृष्टि का स्रष्टा नहीं है, यह बात विस्तार पूर्वक गत प्रकरण में कही जा चुकी है। जगन्नियन्ता और कर्ता-हर्ता के रूप में ईश्वर का अस्तित्व ( सत्ता). न मानने के कारण कई लोग जैनदर्शन को अनीश्वरवादी समझने की भूल कर बैठते हैं और अपने मनमाने ढंग से उसे नास्तिक दर्शन कह देने का दुःसाहस भी कर डालते हैं। यदि ईश्वरवादी की परिभाषा यह हो कि जो ईश्वर को विश्व का कर्ता हर्ता माने, जो उसे विश्वका नियंत्रण करने वाला माने और जो यह माने कि उसकी आज्ञा के बिना वृक्ष का एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है; तब तो निस्संदेह जैन दर्शन अनीश्वरवादी दर्शन है । परन्तु ईश्वरवादी की उक्त परिभाषा तो सही नहीं कही जा सकती है। वेदानुयायी कतिपय दर्शन . परम्पराएँ भी ईश्वर को सृष्टि का कर्ता-हत्ता स्वीकार नहीं करती हैं । सांख्य, योग, मीमांसक आदि दर्शन जगत् को ईश्वर के द्वारा रचा गया नहीं स्वीकार करते हैं। यदि ईश्वरवादी और नास्तिक की उक्त परिभाषा मानी जाय तव + तो इन परम्पराओं को भी नास्तिक मानना पड़ेगा। वस्तुतः ईश्वरवादी और और नास्तिक की यह परिभाषा सही नहीं है । ईश्वरवादी की सीधी और सही • परिभाषा यही है कि जो ईश्वर में विश्वास रखता हो-जो ईश्वरके अस्तित्व को स्वीकार करता हो । इसके अनुसार जैनदर्शन ईश्वरवादी दर्शन है। वह ईश्वर का निषेध या अपलाप नहीं करता। वह मुक्तात्मा के रूप में ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करता है। . जैनदर्शन के अनुसार जो आत्मा राग-द्वेष से सर्वथा रहित हो, जन्ममरण से सर्वथा अलग हो, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हो, और वह अजर, अमर, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त आत्मा, परमात्मा-ईश्वर है। प्रत्येक आत्मा में परमात्वतत्त्व रहा हुआ है। प्रत्येक जीवात्मा राग-द्वेप को नष्ट करके वीतराग भाव की उपासना के द्वारा परमात्मा बन सकता है। जैनदर्शन आत्मा और परमात्मा में मौलिक भेद नहीं मानता है । तात्विक दृष्टि से प्रत्येक जीव में ईश्वर भाव है जो मुक्ति के समय प्रकट होता है। जिस आत्मा ने राग-द्वेष की ग्रन्थी का छेदन कर दिया है और जो कर्म के बन्धन से मुक्त हो गया है ऐसा मुक्तात्मा RREARSANRAK:(१८६)AIR MASATYA
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy