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________________ >> *जैन- गौरव स्मृतियां *><><>< . कषाय नहीं है, प्रमाद नहीं है, मारने की भावना नहीं हैं, पूरी-पूरी सावधानी है इस पर भी यदि प्रारण वध हो जाय तो वह हिंसा कर्म-बन्ध का कारण नहीं है । वही प्राण-हिंसा, हिंसा है जिसके पीछे प्रसाद अर्थात् राग-द्वेष और असावधानी है। वीतराग दशा में भी गमनागमन के कारण सूक्ष्म जीवों की विराधना तो होती है लेकिन वह कर्मबन्ध का कारण नहीं होती है। शास्त्र में कहा गया है कि--- जयं चरे जयं चिट्ठ जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो पावकम्मं न बंधह ।। (दश वैकालिक सूत्र अध्ययन ४) उपयोग पूर्वक सावधानी ( यतना) रखते हुए चलना चाहिए, उपयोगपूर्वक खड़ा रहना चाहिए, उपयोगपूर्वक बैठना चाहिए, उपयोग से शयन करना चाहिए, उपयोग से खाना चाहिए, उपयोग से बोलना चाहिए । उपयोग पूर्वक क्रियाएँ करनेवाला जीव पाप-कर्म का बन्धन नहीं करता है । इस आगम-वाक्य से यह सिद्ध हो जाता है कि जिस क्रिया के पीछे राग या द्वेष है, जो आसक्तिपूर्वक की जाती है, जो प्रमादपूर्वक की जाती है वही क्रिया कर्मबन्ध का कारण है । जिस क्रिया में सतत उपयोग है, अनासक्ति है और विवेक है वह क्रिया कर्मबन्ध का कारण नहीं होती है । हिंसा अहिंसा का मूल आधार वाह्य क्रिया नहीं है अपितु भावना है। बाहर से जिस क्रिया में हिंसा दिखाई देती है उसमें अन्तरंग में हिंसा की भावना होने से वह अहिंसक क्रिया हो सकती है। जैसे डाक्टर शुभ भावना से शस्त्र चिकित्सा करता है और यदि संयोगवश उससे रोगी की मृत्यु भी हो जाय तो डाक्टर को उसकी हिंसा का दोष नहीं लगता है क्योंकि उसकी भावना उसे मारने की नहीं थी परन्तु उसे स्वस्थ करने की थी । सामयिक, संयम आदि क्रियाएँ.. अहिंसक क्रियाएँ हैं परन्तु उदाई राजा को मारनेवाले नाई ने ढोंग पूर्वक इन क्रियाओं का आश्रय लेकर राजा की हत्या की थी । तात्पर्य यह है कि हिंसा - अहिंसा का मूल आधार वाह्य क्रिया नहीं किन्तु भावना है । यदि भावना में वृत्ति में हिंसा है तो वाह्य सूक्ष्म आरम्भ होने पर भी वह हिंसा नहीं कही गई है। मुनिजन अप्रमत्त और अनासक्त भाव से क्रियाएँ करते हैं अतः उन्हें आरम्भ-जन्य पाप नहीं लगता है । वे निरारम्भ XXXXXXXXXXXXX[??=)XXXXXXXXXXX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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