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________________ - - - अध्ययन १ गाः १ मुखवस्त्रिकाविचार: पुनरपि" मुखे वांधी ते मुंहपती, हेठे पाटो धारी। अति हेठी दादी थई, जोतर गले निवारी ॥१॥ "एक काने धजसम कही, खंधे पछेड़ी ठाम । केड़े खोसी कोथली, नावे पुण्यने काम ॥२॥" इति । (श्रावक-ऋषभदासकृते हितशिक्षारासे पृ० ३८ पं० १६) " मुल्लभ बोधी जीवड़ा, मांडे निज पटकर्म । साधु जन मुख मोंपती, वांधी है जिन-धर्म ॥१॥" (मुनिलब्धिविजयकृते हरिवलमच्छीरासे पृ० ७३ दोहा ५)) और भी कहा है "मुखे बांधी ते मुंहपती, हेठे पाटो धारी। अति हेठी दाढी थई, जोतर गले निवारी ॥१॥ ' एक काने धज सम कही, खंधे पछेडी ठाम । केडे खोसी कोथली, नावे पुण्यने काम" ॥२॥ ___ (श्रावक-ऋषभदास-कृत हितशिक्षारासे पृ० ३८ ५ १६) - "सुलभ-बोधी जीवडा, मांडे निज षट-कर्म। साधुजन मुख मोंपती बांधी है जिन-धर्म" ॥१॥ (हरिवलमच्छीरास-मुनिलब्धिविजयकृत पृ० ७३ दोहा ५) વળી કહ્યું છે કે ___" भुणे मांधा ते मुंडपती हे पाट पारी, मति ही हादी था त२ गणे, निवारी. (१) मे आने पर, सम ही, मधे पछी हम, 3 मोसी थी, नावे पुश्यने म” (२) (श्राव-पलास-कृत हित-शिक्षा-रास' પૃષ્ઠ ૩૮ પં. ૧૬) "सुन मोधी 431, भांड निकर घट-भ. સાધુ જન મુખ મેંપતી બાંધી હૈ જિન-ધર્મ” (૧) (७२-भरछी-रास-मुनि सन्धिविनय त ५.४ ७३, s! ५)
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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