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________________ २९६ ૧ ૨ श्रीदशवकालिकसूत्रे ननु यतनापूर्वकभाषणार्थमेव मुनिर्मुखवत्रिकां बध्नातीति तं प्रति पुनरयं विधियर्थ एवेति चेन्न, यथाविधिनिवद्धमुखवस्त्रिकस्यापि मुनेरनृतकर्कशादिसावधभाषणेऽनावृतमुखेन भाषणवदयतना भवतीति सर्वथा भाषासमितिसमाराधनाऽवधानमाधातुमस्योपदेशस्य सार्थक्यात् । शेषं पूर्ववद्वयाख्येयम् ॥६॥ ૫ ૬ ૭ ૮ मूलम् कहं चरे कहं चिट्टे, कहमासे कहं सए। . .. ११ १२ . 13 .. १४. कहं भुंजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधई ॥७॥ छाया-कथं चरेत् कथं तिष्ठेत्, कथमासीत कथं शयीत । कथं भुञ्जानो भाषमाणः, पापकर्म न बध्नाति ॥७॥ सान्वयार्थ:-शिष्य पूछता है-(अगर ऐसा है तो हे गुरु महाराज !) कहं कैसे चरे गमन करे?, कहं कैसे चिट्टे-खड़ा हो?, कहं कैसे आसे= . बैठे?, कहं कैसे सए सोवे?, कहं-किस प्रकार भुंजतो आहार करता हुआ (तथा) भासंतो-बोलता हुआ पावकम्मं-पापकर्म न बंधईनहीं बांधता है ॥७॥ प्रश्न-हे गुरुमहाराज ! अयतनाको दूर करने के लिए ही मुखवत्रिका मुख पर बाँधी जाती है, फिर उनके प्रति 'अजयं भासमाणो य' ऐसा उपदेश देना कैसे संगत है ? । उत्तर-हे शिष्य ! सुनो; मुख पर मुखवस्त्रिका सदा वाँधी रहने पर भी असल कर्कश कठोर आदि बोलनेसे तथा सावध उपदेश देनेसे उसी प्रकार अयतना होती है जिस प्रकार खुले मुख बोलनेसे होती है। साधुको भाषासंबंधी सब प्रकारकी अयतनाका त्याग करना चाहिए इसलिए यह अयतनाके त्यागका उपदेश दिया गया है ॥६॥ પ્રશ્ન-ગુરૂ મહારાજ ! અયતનાને દૂર કરવાને માટે જ મુખવસ્ત્રિકા મુખ ५२ मांधवामां आवे छ, पछी तमनी प्रत्ये 'अजयं भासमाणो य' मेरो पहेश આપ કેવી રીતે સંગત છે? ઉત્તર-હે શિષ્ય! મુખ પર મુખવસ્ત્રિકા સદા બાધી રહેવા છતા પણ અe કર્ક કઠેર આદિ બલવાથી તથા સાવદ્ય ઉપદેશ આપવાથી એવા પ્રકારના અયતના થાય છે કે જેવા પ્રકારની અયતના ઉઘાડે મોંએ બોલવાથી થાય છે સાધુએ ભાષાસ બ ધી સર્વ પ્રકારની અયતનાનો ત્યાગ કર જોઈએ, તેથી આ અયતનાના ત્યાગને ઉપદેશ આપવામાં આવ્યા છે. (૬)
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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