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________________ २१८ श्रीदशवकालिकसूत्रे उभयकायशस्त्रं-परशुदात्रादि । भावशस्त्रं तु नं प्रति मनोमालिन्यम् ॥ ४ ॥ सम्प्रति वनस्पतिमेव सविशेष वर्णयति-तंजहा' इत्यादि । मूलम्-तंजहा-अग्गबीया मूलबीया पोरबीया,खंधवीया बीयरुहा संमुच्छिमातणलया वणस्सइकाइया सबीयां चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥५॥ छाया-तद्यथा-अग्रवीजा मूलबीजाः पर्ववीजाः स्कन्धवीजाः वीजरुहाः सम्मूच्छिमास्तुगलता वनस्पतिकायिकाः संवीजाश्चित्तवन्त आख्याता अनेकजीवाः पृथक्सचा अन्यत्र शस्त्रपरिणतेभ्यः ॥५॥ यहां वनस्पतिकायका विशेष वर्णन करते हैं___सान्वयार्थः-तंजहा-वह इस प्रकारसे है-अग्गवीया-जिनका वीज अग्रभागमें होता है, मूलबीया-जिनका वीज मूलभागमें होता है, पोरबीया-जिनका वीज पोर (सन्धि) में होता है, खंधवीया-जिनका बीज स्कन्ध (डाले) में होता है, बीयरुहा-बीजसे उगनेवाले, संमुच्छिमा विना वीजके उत्पन्न होनेवाले, तणलया-तृण और लताएँ; ये सभी वणस्सइकाइयाबनस्पतिकायिक हैं, सबीया पूर्वोक्त अपने-अपने नामप्रकृतिके उदयसे उत्पन्न हुए वीजसहित सब वनस्पतिकाय चित्तमंतं-सचित्त अक्खाया-कहे गये हैं, अन्नत्थ-सिवाय सत्थपरिणएणं-शस्त्रपरिणतके; ये वनस्पतिकाय अणेगजीवाअनेक जीववाले और पुढोसत्ता-भिन्न-भिन्न सत्तावाले हैं ॥५॥ टीका-तथाहि-अग्रवीजाः अग्रे अग्रभागे वीजं येषां ते तथा कोरण्टकादयः। (फरसा) दात्र आदि उभयकाय शस्त्र है । भावशस्त्र उसके प्रति मनके परिणाम दुष्ट करना ॥४॥ अब वनस्पतिकायका विशेष वर्णन करते हैं-'तं जहा' इत्यादि । अग्रवीज-जिनके बीज अग्र-भागमें होते हैं ऐसे कोरंटक आदि अग्रवीज कहलाते हैं। પત્થર આદિ પરકાયશસ્ત્ર છે કે હાડ, દાતરડું આદિ ઉભયકાય શસ્ત્ર છે. ભાવશw એની પ્રતિ મનને પરિણામ દુષ્ટ કરવા તે ३ पनपतियतु विशेष पनि ४३ छ-तंजहा त्यात અબીજ–જેના બીજ અગ્રભાગમા હેય છે એવાં કેર ટક (હજારી ગુલ) આદિ અગ્રણીજ કહેવાય છે.
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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