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________________ १६२ श्रीदशवकालिकसूत्रे मलम्-अट्ठावए य नालीए, छत्तस्स य धारणहाए। २०. २१ तेगिच्छं पाहणा पाए, समारंभं च जोइणों ॥४॥ छाया-आष्टापदं नालिकया, छत्रस्य धारणार्थाय (धारणाऽष्टया)। चैकित्स्यमुपानही पादयोः, समारम्भश्च ज्योतिषः ॥४॥ सान्चयार्थः-(१८) नालीए-जूएके उपकरण-साधनसे अट्ठावए चौपड़ शतरञ्ज आदि खेलना, (१९) अट्टाए-मुट्ठीसे छत्तस्स-छातेका धारणं-धारण करना (२०) तेगिच्छं रोगकी चिकित्सा करना (२१) पाए पाहणा-पैरोंमें जूते चंपल - मौजे आदि पहिनना च और (२२) जोइणो=अमिका समारंभ आरंभ करना ॥४॥ टीका-च-तथा, नालिका यथाऽभिमतपतनाथ यया पाशाः पात्यन्ते सा= पाशपातनद्रव्यम् तया, उपलक्षणमेतत्-धूतोपकरणमात्रस्य, अष्टापदम्-अष्टौ अष्टौ पदानि-स्थानानि (गृहाणि) सर्वभागेषु यस्मिंस्तत्तथा वस्त्राऽऽधारस्थानम् , इह च लक्षणया धूतसामान्यम् (१८), च-किञ्च छत्रस्य-आतपत्रस्य धारणार्थाय ग्रहणमिति शेपः । यद्वा-'धारणा अढाए' इतिच्छेदः, 'अट्टा' इत्यस्य 'मुष्टि'-रित्यर्थः, "चउहि अट्टाहि लोयं करेइ' १ 'चतम्टभिरष्टाभिर्लोचं करोति' इतिच्छाया ॥ (१८) अष्टापद- 'नालीए' अर्थात् पासा फेंककर चौपड़, शतरंज आदि खेलना, अथवा अन्य प्रकारसे जुआ खेलना। (१९) छत्रधारण करना । गाथामें 'धारणहाए' ऐसा पद है उसे. अलग अलग करनेसे 'धारणा अट्ठाए' होता है। यहाँ आहा शब्दका अर्थ 'मुट्ठी' है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिमें कहा है कि- 'चउहिं अहाहिं लोयं करेई' (१७) माप-नालीए अर्थात्- पास ३ीन यो५, शत२४, माह ખેલવા, અથવા અન્ય પ્રકારે જુગાર ખેલ (१८) छत्र पा२ ४२ थामा धारणहाए मेg ५६ छ, मेने छूटा 13पाथी धारणा+अट्टाए थाय छ गडी मट्टी शहना मर्थ 'नही' छे भूनयमतिमा ४धु छे 3-चउहि अहाहि लोयं करेइ अर्थात्-पमा मगपाने,
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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