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________________ परिग्रहरहित समणा मरोंकी तरह दाणभनीत जैसे पूर्वोक्त अध्ययन १ गा. ३ गोचरीविधौ भ्रमरदृष्टान्तः करिष्यति चैतत्सूत्रकारः स्वयम्-'महुगारसमा' इति पञ्चमगाथया ॥२॥ एतदेव विशेषेण स्फोरयितुं दान्तिकमाह-'एमए' इत्यादि मूलम् एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो। विहंगमा व पुप्फेसु, दाणभत्तेसणे रया ॥३॥ छाया-एवमेते श्रमणा मुक्ता, ये लोके सन्ति साधकः । विहङ्गमा इच पुष्पेषु, दानभक्तपणे रताः ॥३॥ सान्वयार्थः-एमेए-इसीप्रकार ये लोए-लोकम जे-जो मुत्ता द्रव्यभावपरिग्रहरहित समणा-तपस्वी साहुणो साधु संति हैं, (वे) पुप्फेसु-फूलोंमें विहंगमा व-पक्षियों-भमरोंकी तरह दाणभत्तसणे दाता द्वारा दियेजाने वाले आहारकी गवेषणामें रया लीन रहते हैं । अर्थात्-जैसे पूर्वोक्त प्रकारसे भौंरा पुष्परसका पान करता है उसी प्रकार साधु गृहस्थियोंको अमुविधा न पहुंचाते हुए अनेक घरोंसे थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करते हैं ॥ ४ ॥ टीका-एवम् उक्तप्रकारेण ये लोके समयक्षेत्रे सन्ति वर्तन्ते एते ते सर्वे श्रमणाः। 'श्रमणाः, शमनाः समनसः, समणाः' इत्येतेषां प्राकृते 'समणा' इति रूपं करण सूत्रकार स्वयं 'महुगारसमा' इस पांचवीं गाथामें करेंगे ॥२॥ अव विशेष खुलासा करनेके लिए दान्तिक कहते हैं इस प्रकार अढाइ द्वीपमें जितने श्रमण, मुक्त, साधु हैं वे सब दाताद्वारा दिये जाते हुए आहारकी एषणामें इस प्रकार प्रयत्न करें जैसे भ्रमर पुष्पोंके रसके अन्वेषणमें लीन होता है। श्रमण, शमन, समनस, समण, इन सब शब्दोंका प्राकृत भाषामें ४२९१ सूत्रा२ पोते ४ महुगारसमा से पांयमी गाथामा ४२२. (२) હવે વિશેષ ખુલાસો કરવાને દાચ્છનિક કહે છે – આ પ્રમાણે અઢી દ્વીપમાં જેટલા શ્રમણું, મુક્ત, સાધુઓ છે તેઓ બધા દાતા દ્વારા આપવામાં આવતા આહારની એષણામાં એવા પ્રયત્ન કરે કે જેમ ભ્રમર પુષ્પના રસના શોધનમાં લીન થાય છે. શ્રમણ, શમન, સમાસ, સમણું, એ બધા શબ્દોનું પ્રાકૃત ભાષામાં
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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