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________________ दशवकालिक सूत्र हो अवस्थित है। “कसौटी (परीक्षा अथवा प्रतिकूल) निमित्तों से घिरे रहने पर भी मैं अडग, निश्चल अथवा आत्मलक्षी रह सकता हूं" इस प्रकार का अभिमान साधक स्थितिमें बहुधा पतन का ही झारण होता है। [११] इस लिये केवल एकांत मुक्ति का इच्छुक मुनि वेश्या के समीपस्थ प्रदेश को दुर्गति का बढानेवाला एवं दोपों की खान समझकर वहां के गमनागमन का त्याग कर दे। [१२] जहां कुत्ते हों, तुरत की व्याई हुई (नवप्रसूता) गाय हो, मदोन्मत्त बैल, घोडा अथवा हाथी हो अथवा जो लडकों के खेलने की जगह हो, अथवा जो कलह और युद्ध का स्थान हो ऐसे स्थानों को भी (गोचरी को जाता हुआ) साधु दूर से ही छोड देवे। [१३] गोचरी को जाता हुआ मुनि मार्गमें अपनी दृष्टि को अति ऊंची किंवा अनि नीची न रक्से; अभिमान अथवा दीनता धारण न करे और स्वादिष्टतर भोजन मिलने से बहुत खुश न हो और न मिलने से व्याकुल अथवा खेदखिन्न न हो। अपनी इन्द्रियों तथा मन निग्रह कर उनको समतोल रखकर साधु विचरे। [४] हमेशा ऊंचे नीचे लामान्य.कुटुंबोंमें अभेद भाव से गोचरी करनेवाला संयमी साधु बहुत जल्दी २ न चले और न कभी चलते २ हंसे या बोले। टिप्पणी-गोचरी जाते हुए वार्तालाप करने अथवा हंसने से अपनी क्रियामें उपयोग न रहने से निर्दोष आहार की गवेपणा नहीं हो सकती इसी लिये उक्त दोनों वातों का निषेध किया है। [१२ गोचरी के लिये जाता हुआ मिनु गृहस्थों के घर की खिड कियों, झरोखों, दीवालोंके जोड़ों के विभागों, दरवाजों, दो घरों
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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