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________________ आदर्श विनय, आदर्श तप और आदर्श आचार की आराधना किम प्रकार की जाय ! उन की साधना में आवश्यक जागृति । १० भिक्षु नाम सच्चा त्याग भाव कब पैदा होता है ? - कनक तथा कामिनी के त्यागी साधक की जवाबदारी — यतिजीवन पालने की प्रतिज्ञाओं पर - कैसे रहा जाय ? त्याग का संबंध वाह्य वेश से नहीं किन्तु आत्मविकास के साथ है --आदर्श भिक्षु की क्रियाएं । ११ रतिवाक्य ( प्रथम चूलिका ) गृहस्थ जीवन की अपेक्षा साधु जीवन क्यों भिक्षु साधन परमपूज्य होने पर भी शासन के लिये बाध्य है - वासना में संस्कारों का जीवन पर असर - संयम से चलित चित्तरूपी घोडे को रोकने के १८ उपाय -संयमी जीवन से पतित साधु की भयंकर परिस्थिति उसकी भिन्न २ जीवों के साथ तुलना - पतित साधुका पश्चात्ताप-संयमी के दुःख की क्षणभंगुरता और भ्रष्ट जीवन की भयंकरता --- मन स्वच्छ रखने का उपदेश | महत्त्वपूर्ण है ! - नियमों को पालने के १२ विविक्त चर्या ( द्वितीय चूलिका ) 1 1 एकांतचर्या की व्याख्या – संसार के प्रवाह में बहते हुए जीवों की दशा - इस प्रवाह के विरुद्ध जाने का अधिकारी कौन है ?आदर्श एकचर्या तथा स्वच्छंदी एकचर्या की तुलना - आदर्श एकचर्या के आवश्यक गुण तथा नियम -- एकांतचर्या का रहस्य और उसकी योग्यता का अधिकार - मोक्षफल की प्राप्ति । I
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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