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________________ प्रयोग आचागंग एवं सूयगडांग में पाये जाते हैं। यहां केवल कुछ . विलक्षण शब्द प्रयोगों पर विचार किया जाता है । प्राकृत 'किच्चा ' गृह संस्कृत में 'कृत्वा' होता है किन्तु इस ग्रन्थके अन्तकी प्रथम चूलिका में 'किच्चा' के बदले इसी अर्थ में 'कट्टु' शब्द उपयुक्त हुआ है । आचागंग सूत्रकी गाथा नं. १४८ में भी इसी अर्थमें 'कड्डे' शब्दका उपयोग हुवा है । इससे यह सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ भी आचारांग सूत्रके समान ही प्राचीन है । इसी प्रकार प्राकृत 'नच्चा ' (सं. ज्ञात्वा) के अर्थ में इस ग्रन्थके आठवें अध्ययनमें ' जाणं' शब्दका प्रयोग हुआ है । सूत्रकृर्ताग सूत्र के १-१-१ में 'जाणं' का उपयोग हुआ है । * - • इनके सिवाय फोसई, संसेइम, खड्डय, खिसई, अत्ता, महलगं अयपिरो आदि प्रयोगों में कुछ तो आपे प्रयोग है और कुछ भी आचरांग, श्री सूयगडांग, तथा श्री उत्तराध्ययन में व्यवहृत प्राचीन भाषा के प्रयोग है । इस प्रकार दशवैकालिक की प्राचीनता, उपयोगिता, एवं प्रामाणिकता अनेक दृष्टिबिन्दुओं से सिद्ध होती है । दशवैकालिक नाम क्यों पड़ा ? इस प्रश्नका निराकरण निर्मुक्तिकारों ने इस प्रकार किया है " वैयालियाए ठविया तम्हा दसकालियं नाम "" अर्थात् दुस अध्ययनों का उपदेश दिया गया, - दशवैकालिक' रखा गया। इस विकाओं ( सायंकालों) में दस इस लिये.. उनके संग्रहका नाम * यद्यपि इसका अर्थ कहीं २ अपूर्ण वर्तमान कालके 'जानत् " के समान किया गया है किंतु उपरोक्त अर्थ ही यहां विशेष सुसंगत है । (२६)
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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