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________________ आठवां अध्ययन यह ठाणांग सूत्र के आठवें अध्ययन की वस्तु है । नौवां अध्ययन इसमें उत्तराध्ययन सूत्र के प्रथम अध्ययन की वस्तु कुछ, जुदे स्वरूप में वर्णन की गई है। दसवां अध्ययन यह उत्तराध्ययन सूत्र के पन्द्रहवें अध्ययन से विलकुल मिलता जुलता है और यहांतक कि बहुत सी गाथाएं भी आपसमें बिलकुल मिलती जुलती हैं यहींतक नहीं रचनाशैली में भी इसमें इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वंशस्थ, वैतालीय इत्यादि पद्यों का उपयोग गी उसको देखादेखी ही किया गया है । इस ग्रंथ के अंत में दो चुलिकाएं हैं । उनकी रचना एवं प्रकार से ऐसा मालूम होता है कि वे १० अध्ययनों के संग्रह के पीछे कुछ काल बाद इस ग्रंथ में जोडी गई हैं। क्योंकि प्रथम अध्ययन के प्रथम श्लोक में आदि मंगलाचरण किया , है। सातवें अध्ययन में मध्य मंगलाचरण किया है और दसवें अध्ययन में सभ्य मंगलाचरण किया है किन्तु . .चूलिका में मंगलाचरण का नाम तक भी नहीं है किन्तु इनकी प्रथम इस अध्ययनों की भाषा से विलकुल मिलती जुलती है। इससे अनुमान होता है कि इन दोही चुलिकाओं के कर्ता भी श्री० शय्यंभय मुनि ही होंगे। दशवैकालिक की रचना का फल. भगवान महावीर के निर्वाण के बाद उनके . पाट पर गणधर सुधर्मा स्वामी आये। उनके बाद जंबू स्वामी और जंबू स्वामी के
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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