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________________ आचारप्रणिधि ( सदाचारका भंडार ) सद्गुणों को सब कोई चाहता है । सजन होनेकी सभीकी इच्छा हुआ करती है किन्तु सद्गुणोंकी शोधकर साधना करनेकी तीव्र इच्छा, तीव्र तमन्ना किसी विरले मनुष्यमें ही पाई जाती है 1 सद्गुण प्राप्तिका मार्ग सरल नहीं है और वह सरलता से प्राप्त होने योग्य भी नहीं है। इसका मार्ग तो दुर्लभ एवं दुःशकय ही है । मानसिक वृत्ति दुराग्रहों, हठाग्रहों एवं मान्यताओं को बदलना, उनको मन, वाणी एवं कायाका संयमकर त्यागमार्ग के विकट पंथकी तरफ मोड देना यह कार्य मृत्युके मुखमें पडे हुए मनुष्य के संकट से भी अधिक संकटाकीर्ण है । इस सद्वर्तनकी आराधना करनेवाले साधकको शक्ति होने पर भी प्रतिपल क्षमा रखनी पडती है । ज्ञान, बल, अधिकार एवं उच्च गुण होने पर भी सामान्य जनोंके प्रति भी समानता एवं नम्रताका व्यवहार करना पडता है। चैरीको वल्लभ मानना पडता है, दूसरों के दुर्गुणों की उपेक्षा करनी पडती है । सैंकडों सेवकों के होने पर भी स्वावलंबी एवं संयभी बनना पडता है। सैकडों प्रलोभनों के सरल मार्गकी तरफ:
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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