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________________ ११० दशवैकालिक सूत्र हे माता ! हे मौसी ! हे [१५] और हे दादी ! हे बडी दाढ़ी ! बुआ ! हे भानजी ! हे बेटी ! हे नातिनी ! टिप्पणी - भले ही गृहस्थाश्रम में रहते हुए ये संबंध रहे हों फिर भी साधुने तो उन संबंधों को एकवार छोड दिया है इसलिये त्यागी होद से उसके लिये उन संबंधों को पुनः याद करना ठीक नहीं है। दूसरा कारण यह भी है कि ऐसा करने से मोह बढ़ता है । [ १६ ] इसी तरह घरे फलानी ( कोई भी अमुक ), अरे सखी ! अरी लड़की ! आदि २ सामान्य तथा श्ररी नौकरनी ! श्ररी शेठाणी, अरे गोमिनी (गाय की मालकिन ), रे मूर्ख, रे लंपट, रे दुराचारी यहां था ! इत्यादि प्रकार के अपमान जनक शब्दों से किसीको न बुलावे और न किसी को उस तरह से संबोधे ही । टिप्पणी-ऐसे अपमान जनक एवं अविवेकी शब्द बोलने से सुनने वाले को दुःख पहुंचता है इसलिये ऐसी वाणी संयमी पुरुष के लिये त्याज्य है । चाहिये ? ) किसी [१७] ( श्रावश्यकता होने पर किस तरह बोलना स्त्री के साथ वार्तालाप करने का प्रसंग आने पर मधुर भाषामें उसका नाम लेकर और ( यदि नाम न श्राता हो तो ) योग्यतानुसार उसके गोत्र को नामका संबोधन करके एकवार अथवा (श्रावश्यकता होने पर) अनेक बार सिनु उससे वोले । टिप्पणी - वार्तालाप का प्रसंग आने पर सामने के दूसरे व्यक्ति की लघुता व्यक्त न होती हो ऐसी रीतिले विवेकपूर्वक हो संयमी पुरुष बोले । [ १८x१६] इसी तरह पुरुष के साथ वार्तालाप करने का प्रलंग श्राने पर हे बप्पा, हे बाबा, हे पिता, हे काका (चाचा), हे मामा, हे भानजे, हे पुत्र, हे पौत्र थादि मोहजनक संबन्धसूचक विशेषणों का अथवा श्ररे फलाने, हे स्वामी ! हे गोमिक ! हे
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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