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________________ दशवकालिक सूत्र गुरुदेव वाले:[1] प्रज्ञाशन सिचु चार प्रकार की भाषाओं के बलों को भली भांति जानकर उनमें से दो प्रकार की नापा द्वारा विनय सीखे यात् दो प्रकार की भाषा का विवेकपूर्वक उपयोग करे किन्तु बाक्षी की ने प्रकार की मापात्रों का तो सर्वथा उपयोग न करे। ... टिप्पणी-मामा के चार प्रकार हैं : (१) सत्य, (२) अत्य, (३) निस, और (४) व्यवहारिक। इनमें से पहिली और अन्तिन इन दो माताओं को भिनु विन्यपूर्वक बोले और क्लस्य तथा मिस भाषाओं का साया त्याग कर दे। नय और व्यवहारिक नाम भी फार और हिंता रहित हो तो ही दोले, अन्यथा नहीं। [२] (अब सत्य भापा भी किस प्रकार की बोलनी चाहिये इसका स्पष्टीकरण करते हैं:) बुद्धिमान मिड अवतन्य (न बोलने योन्य) सत्य हो तो उसे न बोले (जैसे बाजार में जाते हुए कोई कसाई पूंचे कि तुमने नेरी गाय देखी है तो इसके उत्तर में गाय को उधर से जाते हुए देखनेवाला उत्तर दाता यह न कहे कि "हां, देखी है, वह इधर ले गई है, आदि। क्योंकि उसका परिणाम हिंसानय ही होगा, इसलिये ऐती सत्यभाषा भी महापित कही गई है।) इसी प्रकार मिन्न नापा यांत् कह नापा जो थोडी सत्य हो और थोडी असत्य, मृपा भाषा (असत्य नापण) इन दोनों को तीर्थंकरोंने त्याज्य कहीं हैं इसलिये वाक्यमी साधु इन दोनोंको न बोले । [३] बुद्धिमान भिनु असल्यामृपा (यवहारिक) भापा तथा सत्य भाषाओं को भी पापरहित, अकर्कश (कोमल) तथा संदेह रहित ('नरो वा कुंजरो वा' के समान संदिग्ध भाषा नहीं) रूपसे ही विचारपूर्वक बोले ।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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