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________________ दशवकालिक सूत्र आचार नियम संबंधी अनेकानेक प्रश्न किये। उनकी शंकाओं का जो समाधान किया गया उसका वर्णन इस अध्ययन में किया गया है। अहिंसा का आदर्श, ब्रह्मचर्य के लाभ, मैथुन के दुष्परिणाम, ब्रह्मचर्य पालन के मानसिक चिकित्सापूर्ण उपाय, आसक्ति का मार्मिक स्पष्टीकरण आदि सब का बहुत ही सुन्दर वर्णन इस अध्ययनमें. किया गया है। गुरुदेव बोले:[१] सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्दर्शन से संपन, संयम तथा तपश्चर्या में रत, और आगम (शास्त्र) ज्ञान से परिपूर्ण एक प्राचार्यवर्य (अपने शिष्यसमुदाय सहित एक पवित्र ) उधान में पधारे। टिप्पणी-उस समयमें विशेषतः मुनिवर्ग नगर के समीप के उद्यानों में उद्यानपति की आज्ञा प्राप्तकर रहा करते थे और वहीं पर धर्मप्रवचन सुनने के लिये राजा, महाराजा, राजकर्मचारी तथा नगरजन आकर उनका लाभ लेते थे और धर्माचरण करनेमें दत्तचित्त रहा करते थे। [२] ( उस समय सद्बोध सुनने के लिये पधारे हुए) राजा, राजप्रधानों (मंत्रियों), ब्राह्मणों, क्षत्रियों तथा इतर वैश्यजनों ने अपने मन की चंचलता छोड़कर अत्यन्त श्रद्धा एवं विनय सहित उन महापुरुप से प्रश्न किये कि हे भगवन् ! आपका आचार तथा गोचर आदि किस प्रकारके हैं, उनका स्वरूप क्या है आदि सब बातें आप कृपाकर हम से कहो। टिप्पणी-मन की चंचलता को छोडे विना तत्त्व का गहरा अनुशीलन' नहीं होता और न चंचल मनमें विनय तथा श्रद्धा का विकास ही होता है। विचारक दृष्टि प्राप्त करने के लिये मन की चंचलता का त्याग करने की एकतम आवश्यकता है इसी लिये उक्त गुण के अस्तित्व का विधान उन श्रोताओं में किया है। सूत्रकारने इस विशेषण का यहां उपयोग कर के
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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