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________________ ६६ दर्शर्वकालिक सूत्र श्रचित्त होने पर भी यदि उसको किसी भी प्रकार की शंका होती हो कि यह पानी मेरे लिये पथ्य (पेय) है किंवा नहीं और जांचने के बाद करे तो उस पानी को चखकर जांच ही उसे ग्रहण करे । [७] उस समय भिन्नु दाता को कहे कि चखने के लिये थोडासा पानी मेरे हाथ पर दीजिये | हाथमें पानी लेने पर यदि साधु को मालूम पडे कि यह पानी बहुत खट्टा अथवा बिगड गया है अथवा अपनी प्यास बुझाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो उस दाता बाई को साधु कह दे कि यह पानी अति खट्टा होने अथवा विगढ जाने से श्रथवा तृपा शांति के लिये पर्याप्त न होने से मेरे लिये कल्पनीय नहीं है । टिप्पणी-यदि कोई भोजन या पेय अपने शरीर के लिये अपथ्य हो तो साधु उसका ग्रहण न करे क्योंकि ऐसे प्रतिकूल भोजन से उसके शरीर में रोग होजाने की और रोगिष्ठ होने से चित्त समाधिमें हानि पहुंचने की संभावना है । [ ८० ] यदि कदाचित विना इच्छा के किसी दाताने उस प्रकार का पानी व्होरा को साधु स्वयं न पिये और न दूसरे लिये उसे दे । अथवा ध्यान न रहने से (दिया) हो तो उस भिक्षु को पीने के [८१] किन्तु उस जल को एकांत में ले जाकर प्रासुक (प्राणबीज रहित) स्थान देखकर यत्नापूर्वक (किसी जीव को थोडासा भी कष्ट न पहुंचे इसका ध्यान रखकर ) डाल दे और उसे डाल देने के बाद भिन्नु लौट आवे । [८२+८३] गोचरी के लिये गये हुए साधु को (तपश्चर्या अथवा रोगादि कारण से अपने स्थान पर पहुंचने के पहिले ही
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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