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________________ पिंडैपणा [३७] यदि कहीं पर दो शादमी भोजन कर रहे हों और उनमें से कोई एक श्रादमी साधु को भिक्षा का निमंत्रण दे तो मुनि उस श्राहार पानी की इच्छा न करे किन्तु दूसरे आहली के अभिप्राय की राह देखे। [३८] यदि कहीं पर शे आदमी भोजन करते हों और वे दोनों मुनि को आहार ग्रहण करने का निमंत्रण करें तो सुनि उस दातव्य एपणीय श्राहार पानी को ग्रहण करे। [३६] भिक्षार्थी मुनि, गर्भवती स्त्री के लिये ही बनाये गये जुदे २ प्रकार के भोजनपानों को, भले ही वे उपयोग में आ रहे हों अथवा थानेवाले हों, उनको ग्रहण न करे किन्तु उनका उपयोग हो चुकने के बाद यदि वे बाकी पच जाय तो उनको ग्रहण कर सकता है। टिप्पणी-गर्भवती स्त्री के निमित्त तैयार की गई वस्तु में से आहार पानी ग्रहण न करने का विधान इस लिये किया गया है क्योंकि उस भोजन 'में उस गर्भवती की इच्छा लगी रहती है इस लिये उसको ग्रहण करने से उसको इच्छाभंग होने की और इच्छामंग के भाघात से गर्भ को भी क्षति पहुंचने की संभावना है। [४०+४१] कभी ऐसा प्रसंग भी आ सकता है कि श्रमण मिनु को भिक्षा देने के लिये पूर्णगर्भा स्त्री खडी हो। ऐसे प्रसंग में इन्द्रिय संयमी साधु को उसके द्वारा अन्नपान ग्रहण करना उचित नहीं है इस लिये साधु भिक्षा देनेवाली उस चाई को कहे कि इस प्रकार की भिक्षा ग्रहण करना मेरे लिये कल्प्य नहीं है। टिप्पणी--जिस सी को प्रसति होने में एक महिने तक का अवकाश हो उसे पूर्णगी स्त्री कहते है। इस समय में यदि वह श्री कोई परिश्रम साध्य कार्य करेगी तो इससे गर्भस्थ बालक को हानि पहुंचने का डर है।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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