SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मद्रास प्रान्त । होगया और हर साल वैशाख मासकी शुक्लपक्षमें यात्राहोने लगी। ध्वजाराहण तथामहाभिषेक दश दिन तक होता है और १० वें दिन रथयात्रा बड़े समारोहसे होती है। . नगरमें दिगम्बर आम्नायके ३३ घर हैं, जिनमें ३ घर वोडिआर (जैन ब्राह्मणों) के हैं और उनकी मनुष्यसंख्या १४० है । धर्मशास्त्र करीव १५० हैं । पूजन प्रक्षाल आदिका प्रवन्ध जैन ब्राह्मणोंके हाथमें है। मन्दिरमें कायोत्सर्ग श्रीमल्लिनाथस्वामीकी प्रतिमा और ज्वालिनी देवी (यक्षिणी) की प्रतिमा विराजमान है। मूडबद्री (जैनकाशी)। (अतिशय क्षेत्र) यह क्षेत्र दक्षिण कनैड़ा जिलेमें 'बंगलोर' स्टेशनसे करीव २२ मीलके अन्तरपर है । यहांपर एक 'पुलिसथाना, अस्पताल, रजिस्ट्रारका आफिस' और एक 'मुसाफिरखाना' है। दिगम्बर जैनियोंके आवादघर ५२ हैं। जिनकी मनुष्य संख्या करीव २८३ है। इस नगरमें जो दिगम्बर जैनियोंके मन्दिर है वे 'श्रीचन्द्रप्रभु' तीर्थकरके अर्पण किये हुए हैं । शिलालेखोंके आधारसे इसका 'विद्रो' 'वेणूपुर' या 'वंसपुर' नाम जाना जाता है । विदारू और वेणू इन दोनों शब्दोंका अर्थ वास और वाबू होता है और तुलू देशके राज्यसे लगता है । यह प्राचीन जैन ब्राह्मणांका निवास स्थान है, जिसका मुखिया अभीतक जीवित है, और इनको सारसे ८००) रुपया सालाना पेन्शन भी मिलती है । यहांपर जैनियोंके मुख्य गुरु महाराज चारुकीर्ति 'पंडिताचार्य स्वामी गद्दीपर हैं। आप एक मठमें रहते हैं। यहांपर जैनधर्मके २००० के करीव प्राचीन ग्रंथोंका संग्रह है। । यहां १८ मन्दिर हैं। इनमेंसे कोई तो बड़े ही सुंदर पत्थरोंके बने हुए हैं । इनकी छत्तं भी बड़े २ पत्थरोंकी बनी है । सात मन्दिरोंके साम्हनेके भागमें एक ही पत्थरका बड़ा ऊंचा स्तम्भ है, जिसे 'मानस्तम्भ' कहते हैं और ताम्बेके पत्रोंसे जड़े हुए लकडीके दो 'ध्वजास्तन्म और मानस्तम्भ' मन्दिरोंके बीचमें लगे हैं । इस वस्तीके मन्दिरोंके स्तम्भ वगैरः छह 'सतार' नामसे प्रसिद्ध हैं और यह जैनी व्यापारियोंके तरफसे बनाये गये है ऐसा जान पड़ता है ।। वस्तीके मन्दिर सर्व तीर्थंकरोंको अर्पण किये हैं । और दूसरी वरतीमे पद्मावती देवीका मन्दिर है । सबसे बड़ा और सुन्दर हौसवस्ती वा 'तिरुपूरन' वस्ती नामक एक नवीन मन्दिर 'चन्द्रनाथका' प्राचीन कालमें जंगलसे घिरा हुआ था, परन्तु इस समय परकोटासे घिरा हुआ है । और इसको जैनीभाई त्रिभुवन तिलक चूडामणी कहकर पूजनप्रक्षाल आदि करते हैं । यह मन्दिर ई० सन् १४२९-३० में बनाया गया १ वस्ती शब्दका अर्थ मन्दिरोंका समूह है।
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy