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________________ . राजपूताना-मालवा। कि यहांपर जैन भूतियां हैं सो निकाल ले । प्रातःकाल होतेही उस किसानने प्रतिमाएँ खोदकर निकाल ली। और कूकसी ग्राम जो यहां से तीन मील है वहांके श्वेताम्बर भाडयोंको खबर दी। श्वेताम्बरी भाई पहिले आये, पश्चात् दि० भाइयोंको मालूम हुआ सो वह भी आये, दोनों सम्प्रदायोंमें झगड़ा चला। पीछे आपस में ऐसा फैसला हुआ कि १२ प्रतिबिम्बों में से ५ बड़ी बड़ी प्रतिमाएँ दिगम्बर भाई ले लेंवें और शेष नौ छोटी छोटी श्वेताम्बर ले लेवें । तदपश्चात् दोनों सम्प्रदायमें ऐसा ही हुआ। भाइयोंने ये प्रतिमाएँ कूकसी लानी चाही, तब गाड़ीमें प्रतिमा रखकर ज्यों ही गाड़ी चलाने लगे तो गाड़ी नहीं चली, बहुत उपाय किये पर सब निष्फल हुये। बाद दोनों सम्प्रदायके जुदे जुदे मन्दिर बनवाकर और प्रतिष्ठाकर यहींपर उक्त प्रतिविम्वें स्थापित कर दी। एक दिगम्बर जैन मन्दिर और एक धर्मशाला है, मूलनायक. 'श्रीमल्लिनाथस्वामी' पद्मासन ३-३॥ फुट अवगाहनाकी प्रतिबिम्ब सं० १३३५ की प्रतिष्ठित है, बाकी चार प्रतिमाओं पर लेख बगैरः कुछ नहीं है, यहांके प्रबन्धकर्ता, श्रीमान् रोडमल्ल सूरजमल्लजी' सुसारी वाले बहुत उत्साही सज्जन हैं । प्रबन्ध अच्छा है, परन्तु ब्राह्मणपुजारी योग्य नहीं है। ग्राम उजाड़ है, एक बड़ा भारी तालाव लाखों रुपयोंकी लागतका अनुमानश्मीलके चक्कर (घेरे) में है, और कई सुन्दर बावड़ी भी हैं। प्राचीन मकानोंके खंडहर याद दिला रहे हैं कि पूर्व समय में यह कोई सुन्दर शहर होगा, यह क्षेत्र 'बड़वानीसे' करीव ८ मील की दपिर ईशान कोनमें है। बैलगाड़ी और घोडागाड़ी अच्छी तरह जासकती हैं. देवलिया ( देवगढ़) राजपूताना-मालवा रेल्वे लेनमें मंदसोर स्टेशनसे करीब २२ मील प्रतापगढ़ रि० की प्राचीन राजधानी 'देवलिया' प्रतापगढ़से करीब ७॥ मील की दूरीपर है। रास्ता स्टेशनसे परतापगढ़ तक अच्छा है, यहांके लिये सवारी परतापगढ़से घोड़ा बैल उंट मिलते हैं, बैलगाड़ी नहीं जाती रियासत प्रतापगढ़को स्थापित करनेवाले राजा बीकाने' संवत् १५६१ ने इस प्रदेशकी भिल्ल राजकन्याको पराजित कर यह नगर वसाया था उस समय यहां पर दिगम्बर जैनियोंकी बड़ी भारी बस्ती थी, परन्तु कालकी विचित्र गतिसे इस समय केवल ८ घर और २० मनुष्य ही शेष रह गए हैं। दो मीनाकारीके बन हुए मंन्दिरभी हैं । इन मन्दिरोंमें ६ दर्शनीय प्रतिमाएँ है, जिनमें दो प्रतिबिम्ब चांदीकी श्रीशान्तिनाथ और आदिनाथस्वामीकी अति मनोज्ञ पद्मासन बिराजमान है। धर्मशास्त्र करीव ५०० हैं।
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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