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________________ मध्यप्रदेश । . इस मन्दिरके दर्शन करके पुल परसे आजानेपर पार्श्वनाथ भगवानका (नं १) प्राचीन मन्दिर मिलता है। इस मन्दिरके खंभोंका तथा गुम्बजका शिल्प कार्य दर्शनीय है। इसमें उत्तराभिमुखी सप्तफणमंडित पार्श्वनाथ भगवानकी प्राचीन प्रतिमा है। प्रतिमाके पीछे भीतपर २४ तीर्थकरोंकी प्रतिमाएँ उकीरी गई हैं। मुक्तागिरि पार्श्वनाथके नामसे इसी मन्दिरकी सर्वत्र ख्याति है । ' इस मन्दिरके पास ही नं० २-३-४-५-६-७ के मन्दिर है, जिनमें पाषाणकी प्राचीन मूर्तियां हैं । नं०८ के मंदिरमें चार प्रतिमाओंपर सं० १५४८, खुदा हुआ है। इस मंदिर में एक प्रतिमा खड्गासन है । नं० ९ के मीदरमें सिर्फ एक ही प्रतिमा है । कोनोंमें कई स्थानों में प्रतिमा रहनेके निशान हैं, परन्तु इस समय वे खील हैं । इस मन्दिरके पासके मन्दिरमें खंडित प्रतिमाएँ हैं । नं० १०-११-१२ में चरणपादुका हैं । नं० १३ में रत्नत्रयकी प्राचीन मूर्ति हैं और नं० १४ के मन्दिरमें अजितनाथ भगवानकी मूर्ति हैं। ..पार्श्वनाथके मन्दिरके नीचे एक धर्मशाला है। यहांसे पास ही १५-१६ नम्बरके मान्दर हैं, जिनमें संवत् १५४८ की दो प्रतिमाएं हैं। नं० १६ के मन्दिरमें एक भोहरा है, जिसमें मन्दिरकी जोखिम रक्खी जाती थी। पार्श्वनाथ मन्दिरके बगलकी पैडियोंसे चढ़कर ऊपर जानेपर १८-१९-२०-२१ नं० के चार मन्दिर मिलते हैं। इनके दर्शन करकेदाहिनी ओरसे पर्वत शिखरपर चढ़ना चाहिये यह स्थल सबसे अधिक ऊंचाईपर है, इसलिये यहांसे वनश्री बहुत ही रमणीय दिखलाई देती है । पहले जिस धबधबाका वर्णन किया हैं उसका सर्पाकार प्रवाह इसी शिखरपरसे मन्दिरके आगेसे होकर जाता है । इस शिखरपर२२-२३-२४-२५नम्बरके ४ मन्दिर हैं जिनमैसे एक ऊपर चढते ही दाहिनी ओर मिलता है, इसमें पादुकाएं स्थापित हैं। साम्हने वीस तीर्थकरोंकी चरणपादुकाओंका कूट है। बाई ओर महावीर,वासुपूज्य और नेमिनाथ इन तीर्थकरोंकी पादुकाओंका एक मन्दिर है। आगे साम्हने बहनेवाले जलप्रबाहको लांघकर जानेसे आदिनाथ भगवानकी पादुकाओंका मन्दिर है । पर्वतके इस भागकी शोभा, एकान्तवास, शान्ति, निशब्दता, जलप्रबाह और वनश्रीकी रमणीयता देखकर ' बड़ा ही आनन्द होता है और ऐसा जी होता है कि, यहींपर ध्यानस्थ होकर जीवनको सफल करें । कहते हैं, यहांपर पहले भिल्ल लोगोंकी बस्ती थी, परन्तु इस समय कोई नहीं रहता है । इस पर्वतके समीपके पहाड़ी प्रदेशसे ताप्ती और पूर्णा नदी बहती हैं। शिखरस्थित कूटोंके दर्शन करके नीचे उसी मार्गसे:आनेपर दाहिनी ओर दूसरे
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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