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________________ ३०७ मध्यप्रदेश । मुक्तागिरी सिद्धक्षेत्र। Deepika अञ्चलपुर वर णियडे ईसाणे भाए मेंटगिरीसिहरे। आहुद्वय कोडीओ णिव्वाणगया णमो तेसिं ॥ (णिब्बुयकंडे) एलिचपुरसे १२ मील ईशान कोणकी ओर मुक्तागिरी वा मेंडगिरी सिद्धक्षेत्र है । बंगाल-नागपुर रेलवेके वडनेर स्टेशनपर उतरकर अमरावती जाना चाहिये । अमरावतीसे एलिचपुर ३० मील है । एलिचपुर जानेके लिये वहां टांगे वा गाडियां किरायेपर मिलती हैं। * एलिचपुरकी फौजी छावणी परतवाडामें है। परतवाड़ासे आगे २ मील जानेपर रास्तके दाहिनी ओर मुक्तागिरि स्वेतवर्ण जिनमन्दिर दिखलाई पड़ते हैं। खरपी नामक ग्रामतक अच्छी सडक गई है। वहांसे दाहिनी ओर श्रीपद्मनन्दि भट्टारककी उत्तराभिमुखी समाधिके पाससे मुक्तागिरिका मार्ग फूटता है । इस समाधिके पास एक छोटीसी धर्मशाला है, जिसमें यात्रीलोग आकर रहते हैं। कारंजामें भट्टारकोंका एक प्रसिद्ध पट्ट है । उक्त पट्टपर आजतक ३६ अधिकारी हो चुके हैं। मलयाद्रि, मलखंड वामान्यखेट (निजाम राज्य) जो जगत्मसिद्ध आचार्योंका पट्ट था, जिसको कि पूर्व कालमें भगवज्जिनसेन गुणभद्र आदि भुवनभूषण विद्वान् सुशोभित कर चुके हैं। कारंजाका पट्ट उसी पट्टकी शाखा है । लगभग ५००वर्ष पहले इसकी स्थापना हुई थी। शक संवत् १५७९ तक इस पट्टपर १८ पट्टाधीश हो चुके थे । इस समय कारजाकी गद्दीपर श्रीदेवेन्द्रकीर्ति भट्टारक हैं। पद्मनन्दिसे लेकर जिनकी कि उक्त समाधि बनी हुई है, भट्टारकोंकी परम्परा इस प्रकारसे है:-देवेन्द्रकीर्ति--पद्मनन्दी देवेन्द्रकीर्ति-रत्नकीर्ति-देवेन्द्रकीर्ति। पद्मनन्दिका समाधिकाल संवत् १८७६ आश्विनवदी ५ का है। पदानन्दिके गुरु देवेन्द्रकीर्ति वा सेतवालजातीय प्रसिद्ध ब्रह्मचारी महतीसागर ये समकालीन विद्वान् थे। भट्टारक पझनन्दि बड़े भारी विद्वान, संयमी, मनोनिग्रही वा मंत्रशास्त्रज्ञ थे। संवत् १५०० के लगभग नांदेडके निकट अर्धापुरी में एक उत्तम प्रतिमा थी। वहांके जौनयोंने उसे कारंजा लानेका विचार किया। परन्तु वहांके अन्य धर्मीय लोग
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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