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________________ श्रीभगवती सूत्र [५३८] है। वह क्या घुद्ध होता है ? मुक्त होता है ? निर्वाण पाता है ? समस्त दुःखों का अंत करता है? इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले यह जान लेना श्रावश्यक है कि असंवृत अनगार किसे कहते हैं ? जिसने आस्रवद्वार को नहीं रोका है, अर्थात् जो फर्म का प्रास्रव करने वाली क्रियाएँ करता है, जिसकी प्रवृत्ति हिंसा और मृपावाद आदि में है, जो अदत्त को ग्रहण करता है, जो ब्रह्मचर्य का भी भली भाँति पालन नहीं करता, जो अपरिग्रही भी नहीं है, फिर भी जो अनगार कहलाता है, उसे असंवृत अनगार समझना चाहिए। प्रश्न होता है-जिसमें साधु के अहिंसा आदि लक्षण ही नहीं पाये जाते, उसे अनगार या साधु क्यों कहा जाय ? इसका उत्तर यह है कि यद्यपि वह वास्तव में साधु नहीं है, . फिर भी अपने आपको साधु के रूप में प्रसिद्ध करता है, वाह चिह्न भी.वह साधु के ही रखता है, इस कारण लोक में वह साधु कहलाता है । मगर क्योंकि वह साधु के सम्पूर्ण प्राचार का पालन नहीं करता, इसलिए केवल नाम और भेप के उस साधु को यहां असंवृतं (असंवुड ) अनगार कहा है। ऐसा साधु क्या मुक्ति प्राप्त करता है ? यह गौतम स्वामी का प्रश्न है। . . . . . . . " . चरम भव-अंतिम जन्म-की प्राप्ति होने पर सिद्धि प्राप्त होती है। अतएव 'सिद्ध होता है' इस क्रिया-पद का अर्थ यहाँ यह समझना चाहिए-चरम भव प्राप्त करके मोक्ष के योग्य होता है ?'. . चरम भव प्राप्त करने पर भी. बुद्ध सब नहीं होते ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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