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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि अध्मात्र कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन, सकती है। रात्रि वर्णन प्रसङ्ग में - इस अधेरे के कारण न तो ऊपर दिखाई दे रहा है, न नीचे, न तो आस-पास दिखाई दे रहा है और न तो पीछे ही । इस रात्रि के गोद में अन्धकार से घिरा हुआ संसार ऐसा दीखता है, मानों गर्भपात के समय गर्भ की झिल्ली से घिरा हुआ कोई बालक हो नौर्ध्वमीक्षण गर्तिन चाप्ययां नाभितोन पुरतो न पृष्ठतः । लोक एष तिमिरौधवोष्ठितो गर्भवास इव वर्तते निशि ।। ६३ और पुनः इसी वर्णन प्रसङ्ग में कहते है- अन्धकार ने तो उजली, मैली, चल-अचल, टेढ़ी-सीधी, विभिन्न गुणों से युक्त सभी वस्तुओं को एक समान कर दिया है। ऐसे दुष्टों की महत्ता को धिक्कार है, जो अच्छे-बुरे गुणों का अन्तर ही मिटा देते है शुद्धमाविलमवस्थितं चलं वक्रमार्जवगुणान्वितं च यत् । सर्वमेव तमसा समीकृतं घिङ महत्वमसतां हतान्तरम् ॥ ६४ चांदनी के फैलने में अन्धकार दूर हो गया है और तालाबों में कमल सम्पुटित हो चुके है; जिससे ऐसा प्रतीत होता है, मानों चन्द्रमा रूपी नायक रात्रि रूपी नायिका के मुख पर बिखरे हुए अन्धकार रूपी बालों को हटाकर चुम्बन ले रहा हो और उसके रस में आनन्द मग्न हो जाने के कारण मानों उसकी कमल रूपी आखें मुँद गयी हो - २४३ 1 1 1
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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