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________________ प्रथम मछिनोट : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व "तददोषौ शब्दार्थो सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि"।२८ साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ के काव्य लक्षण की भी विद्वानों ने प्रशंसा की है, उनका काव्य लक्षण है वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।३९ और पण्डितराज जगन्नाथ के काव्य-लक्षण को अत्यधिक आदरपूर्वक स्वीकार किया जाता है जो इस प्रकार है "रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्"। इस प्रकार और भी काव्यशास्त्रियों ने काव्य-स्वरूप के सम्बन्ध में अपने-अपने विचार व्यक्त किये है। परन्तु उपर्युक्त इन तीनों (आचार्य मम्मट, . विश्वनाथ और पण्डितराज जगन्नाथ) के अतिरिक्त इस समय किसी भी आचार्य की काव्य परिभाषा को उतना महत्त्व नहीं मिला है और इस कारण वे लोकप्रिय नहीं हुए। आचार्य मम्मट के काव्य लक्षण की विशेषता आचार्य मम्मट ने सर्वप्रथम काव्य को शब्दार्थों युगल कहा है और फिर उसे दोषों से रहित, गुणों से युक्त, साधारणतः अलङ्कार सहित, किन्तु कही-कही अलङ्कार रहित होना भी बताया है। इस प्रकार आचार्य मम्मट ने काव्य के प्रमुख तत्त्वों का समावेश अपने काव्य लक्षण में किया है। मेरे विचार में यह काव्य का सर्वोत्कृष्ट लक्षण है क्योंकि इसमें काव्य के समस्त तत्त्वों का समावेश है।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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