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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि 24 कालिदास कत कुमारसम्भव का तलनात्मक अध्ययन सप्तम् असम कालिदास व्यक्ति, मुनि, उपकारी पुरुष, उपकारी वणिक आदि नायक हो सकते है। फलतः कल्याण मार्ग के अभ्युदय के निमित्त किसी भी उपादेय गुण की सत्ता से युक्त कोई भी व्यक्ति जैन महाकाव्य का नायक हो सकता है। तात्पर्य यह है कि जैन कवियों के लिए समाज में निम्न स्तर का प्राणी कथमपि उपेक्षणीय नहीं है वस्तुतः वह जैनधर्मी (iii) दोनों महाकाव्यों के आधार में भी अन्तर है। संस्कृत महाकाव्य रामायण, महाभारत तथा पुराणों में चित्रित कथा तथा पात्रों के आधार पर निर्मित किये गये है। जैन महाकाव्य के आधार ग्रन्थ श्रमण संस्कृति के पोषक ग्रन्थ है, जिनमें आदिपुराण, उत्तरपुराण तथा हरिवंश पुराण मुख्य है। जो त्रिषष्टिशलाका पुरुषों (२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलराम (बलभद्र), ९ वासुदेव (नारायण) तथा ९ प्रति वासुदेव (प्रतिनारायण) कुल ६३ महापुरुष के जीवन-चरित का वर्णन पुराण शैली में करते है। - (iv) संस्कृत महाकाव्यों का उद्देश्य रसोन्मेष होता है, परन्तु जैन कवि अपने धर्म की अभिवृद्धि के लिए ही महाकाव्य की रचना करते है। वह त्याग, संयम तथा अहिंसा के आदर्श की व्याख्या के निमित्त उपदेश देने से नहीं चूकते। इस प्रकार दोनों महाकाव्यों के उद्देश्य में कुछ पार्थक्य दृष्टिगोचर होता है।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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