SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ हिन्द : जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा, सौवर्ण्यः पुत्रिका यत्र रत्नस्तम्भेषु रेजिरे। अध्येतुमागता लीलां देव्या देवाङ्गना इव।।१५ “यन्मणिक्षोणिसंक्रान्त-मिन्दुं कन्दुकशङ्कया। आदित्सवो भग्ननरवा न वालाः कमजीहसन्।।" "व्यालम्बिमालमास्तीर्ण-कुसुमालि समन्ततः। यददृश्यत पुष्पास्त्र-शस्त्रागारधिया जनैः।। १७ द्वितीय सर्ग अष्टापद वर्णन द्रष्टव्य है "प्रतिक्षिपं चन्द्रमरीचिरेचितामृतांशुकान्तामृत पूर जीवना। वनावली यत्र न जातु शीतगोः, पिधानमैच्छन्मलिनच्छविंधनम्।। १८ “पतन्ति ये वालखेः प्रगे करा यदुल्लसद्भरिक धातुसानुषु। क्रियेत तैरेव विसृत्य चापलादिलाखिला गैरिकरंगिणी न किम्।।"१९ इन उद्धरणों में भाषा की प्रौढ़ता तथा शैली की गम्भीरता उसके स्वरूप को व्यक्त करने में सहायक सिद्ध हुई है। इस प्रकार हम देखते है कि जैनकुमारसम्भव में महाकवि का शब्द चयन तथा शब्द गुप्फन उनकी पर्यवेक्षण शक्ति तथा वर्णन-कौशल सभी कुछ प्रशंसनीय है। कवि प्रत्येक प्रसंग को यथोचित वातावरण में उसकी समस्त विशेषताओं के साथ वर्णन करने में
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy