SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम, परिषद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष, कापि नार्धयमितश्लथनीवी, प्रक्षरन्निवसनापि ललज्जे। नायकानननिवेशितनेत्रे, जन्यलोकनिकरेऽपि समेता।।१५० नरस्य निद्रावधिवीक्षणोत्सवं, तनोति यस्तस्य फलं किमुच्यते। विमुच्यते सोऽपि विचारतः पृथ-ग्गतः प्रथां यो मलमूत्रवाधया।।५१ उपर्युक्त दोनों श्लोकों में वर्णित क्रमशः नीवी तथा मलमूत्र शब्द व्रीडा या लज्जा जनक है अतः श्लील दोष युक्त है। ३. सात्विकभाव स्वशब्दवाच्यता दोष "व्यभिचारि रसस्थायिभावानां शब्दवाच्यता" ।२५२ तत्करे करशयेऽजनिजन्योः संचरे सपदि सात्विकभावैः। सात्विको हि भगवान्निजभावं, स्वेषु संक्रमयतेऽत्र न चित्रम्।।१५३ यहाँ सात्विकभाव स्वशब्दवाच्य होने से दोषपूर्ण है। १७५
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy