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________________ पञ्चम दिएट : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष माधुर्य के इस स्वरूप विवेचन में मम्मट का ही प्रभाव परिलक्षित होता है, परन्तु मम्मट ने माधुर्य को द्रुतिहेतु के अतिरिक्त आह्वादस्वरूप वाला भी कहा है। साथ ही करुण, विप्रलंभ तथा शान्त में माधुर्य को उत्तरोत्तर चमत्कारजनक कहा है। 'करुणे विप्रलम्भे तच्छान्ते चातिशयान्वितम्।।" जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने इस क्रम को बदलकर शान्त, करुण और विप्रलम्भ कर दिया है। जहाँ आचार्य मम्मट ने तीनों गुणों का स्वरूप वतलाकर वाद में उसके व्यञ्जक वर्णादि की चर्चा की है वहीं आचार्य हेमचन्द्र ने ऐसा न करके एक-एक गुण से सम्बन्धित सभी बातों पर विचार किया है। माधुर्य गुण के स्वरूप-विवेचन के वाद वे उसके व्यञ्जकों का निरुपण करते हुए लिखते हैं कि अपने अन्तिम वर्ण से युक्त, ट वर्ग को छोड़कर अन्य सभी वर्ग हश्व रकार तथा णकार और समासरहित (या अल्पसमास वाली) कोमल रचना माधुर्य व्यञ्जक है।'६ इसमें आचार्य हेमचन्द्र ने प्रायः मम्मट का अनुसरण करते हुए माधुर्य गुण के व्यञ्जक वर्ण, समास और रचना का प्रतिपादन किया है। वृन्ति में उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अपने वर्ग के (अन्तिम) पञ्चम वर्ण ङ ज ण न म से युक्त, शिर के वर्ण सहित
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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