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________________ पञ्चम दिलछेद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलड्डार, गुण एवं दोष माधुर्य और सौकुमार्य सरस अर्थ के बोधक पदों का प्रयोग माधुर्य गुण है और कोमलकान्त-पदावली का प्रयोग सौकुमार्य गुण है। माधुर्य यथा फणिमार्ण किरणालीस्यूत चञ्चन्निचोलः। कुचकलश निधानस्येव रक्षाधिकारी उरसि विशदहारस्फारतामुज्जिहानः किमिति कर सरोजे कुण्डली कुण्डलिन्याः।।५ से यहाँ शृङ्गाररस के अनुकूल सरस अर्थ के वोधक पद होने माधुर्य गुण है। सौकुमार्य, यथा प्रतापदीपाञ्जनराजिरेव देव। त्वदीयः करवाल एषः। नो चोदनेन द्विषतां मुखानि श्यामाममानानिकथं कृतानि।। यहाँ कोमल कान्त पदावली होने से सौकुमार्य गुण है। आचार्य हेमचन्द्र ने माधुर्य, ओज तथा प्रसाद-इन तीन गुणों को स्वीकार किया है माधुर्योजः प्रसादास्त्रयोगुणाः।।७ तथा अन्य सभी गुणों का खण्डन किया है। आचार्य मम्मट द्वारा किये गये खण्डन की अपेक्षा आचार्य हेमचन्द्र का खण्डन-मण्डन अधिक व्यापक है। जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने स्वोपज्ञ विवेक टीका में विस्तारपूर्वक रसवादी आचार्यों के अतिरिक्त अज्ञातनामा आचार्य मम्मट, १५८
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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