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________________ पञ्चमद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष महाकवि जयशेखर सूरि ने अपने महाकाव्य जैनकुमारसम्भव में प्रायः सभी प्रमुख छन्दों की योजना विभिन्न वर्णन प्रसंगों में किया है। और छन्दों के प्रयोग में नाट्यशास्त्र के नियमों का पालन किया है। इस महाकाव्य के प्रथम सर्ग के आरम्भ में अयोध्यापुरी नगरी के वर्णन में उपजाति छन्द की योजना की गयी है अस्त्युत्तरस्यां दिशि कोशलेति, पुरी परीता परमर्द्धि लोकैः । निवेशयामास पुरः प्रियायाः, स्वस्यावयस्यामिव यां धनेशः ।। २२ और सर्ग के अन्त में छन्द वदल दिया गया है वहाँ शार्दूल विक्रीडित छन्द की योजना है नारीणां नयनेषु चापलपरीवादंविनिघ्नन् सौन्दर्येण विशेषितेन वयसा वाल्यात्पुरोवर्तिना । । निर्जेतापि मनोभवस्य जनयंस्तस्यैव वामाकुले भ्रान्तिं कालमसौ निनाय विविधक्रीडारसैः कंचन ।। २३ जैनकुमारसम्भव के द्वितीय सर्ग में वसन्ततिलका और तृतीय सर्ग के C अन्त में मन्दाक्रान्ता छन्दो की योजना हुई है। तदा हरेः ससदि रूपसम्पदं, प्रभोः प्रभाजीवनयोवनोदिताम् । १३९
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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