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________________ चतुर्थ परिमोद : पात्रो का विवेचन देखा।२३ ३. जिसके सघनता से पूँछ के द्वारा प्रहार किये जाने के फलस्वरूप पृथ्वीतल को प्रकम्पित करने वाला, विशाल गुफा के अन्दर सिंहनाद के कारण भयंकर शब्द उत्पन्न करने वाला तत्काल विदीर्ण हुए हाँथी के कुम्भस्थले से टूटती हुई उस मृगासी सुमंगल ने स्वप्न में सिंह को देखा।२४ ७/२८, २९ अक्षय द्रव्य समूह के कारण परिपुष्ट पेट वाली और शीलादि गुणों को धारण करती हुई, अपने शरीर की किरणों के द्वारा स्वर्ण आभूषण को विनष्ट करती हुई (तिरस्कृत करती हुई) नेत्र, मुख, हाँथ, पैर आदि आश्रय भूत समझकर उस सुमंगला का लक्ष्मी ने आश्रय लिया। उसके किनारे के भाग के द्वारा उस सुमंगला को लक्ष्मी ऐसा समझकर उसका आश्रय लिया।२४ ५. सुगन्ध के लोभ से भ्रमरों के द्वारा आवेष्ठित ऐसे स्त्री के भुजा में पाश के समान लिप्त अतएव पुण्यशाली एवं कण्ठ में पहनने योग्य, पारिजात के सुगन्ध से युक्त विश्व का अभीष्ट अनुपम पुष्प निर्मित माला को सुमंगला ने प्रत्यक्ष रूप से देखा।६ जो देवताओं के समान चकोर की प्रीति अर्थात् अमृत के समान प्रीति प्रदान करने वाले, रोहिणी के समान रात्रि के द्वारा पति के रूप में प्राप्त किये गये कामुक के समान कमलिनी के द्वारा जिसके ६.
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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