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________________ तृतीय पं. जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव कुमारसम्भव में केवल एक पद्य में हिमालय के पुरोहित द्वारा पार्वती को पति के साथ धर्माचरण की शिक्षा दी गयी है, जबकि जैनकुमारसम्भव में इन्द्र और शची द्वारा क्रमशः वर और वधू को अलग-अलग शिक्षा दी गयी है।२ कुमारसम्भव में विवाह पश्चात् शंकर जी पार्वती का हाथ पकड़कर कौतुकागार में प्रविष्ट कराते है। उसी प्रकार जैनकुमारसम्भव में ऋषभदेव वधुओं का हाथ पकड़कर मणिमय महल में तत्वान्वेषी की तरह प्रविष्ट करते है।३३ कुमारसम्भव के आठवें सर्ग में कालिदास ने शिव-पार्वती के सम्भोग का उन्मुक्त वर्णन किया है, जो अत्यन्त आकर्षक एवं रंगीला है परन्तु जयशेखर सूरि ने सम्भवतः रुढ़िगत जैनादर्शों के कारण एक ऐसा वर्णन अपने हाथ से गवाँ दिया है, जो अत्यन्त आवश्यक था। उनके नायक ऋषभदेव अनासक्त भाव से काम-क्रीड़ा में प्रवृत्त होते है, वे सुमङ्गला को पूर्वजन्म का भोक्तव्य मानकर उनके साथ शयन करते है। कुमारसम्भव में वर्णित पौर नारियों के सम्भ्रम के चित्रण का पूर्ण प्रभाव जैनकुमारसम्भव पर पड़ा है।५ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जयशेखर सूरि की यह कृति कुमारसम्भव से सर्वाधिक प्रभावित है और इसके लिए श्री जयशेखर कालिदास के ऋणी है। जैनकुमारसम्भव पर पुराणों का प्रभाव जैनकुमारसम्भव के नायक स्वामी ऋषभदेव है। भरतचरित के कुछ
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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