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________________ ५० श्रवणवेrगोल और दक्षिण के अन्य जैनतीर्थ 7 ओर वाले स्तम्भ में कवि अरदास का बनाया हुआ संस्कृत मे पडितार्य के समाधिमरण - सम्बधी शिलालेख है । इसी स्तम्भ के नीचे के भाग में एक आचार्य अपने शिष्य को उपदेश देते हुए दिखाये गए है । दूसरे स्तम्भ में आचार्य श्रुतमुनि के समाधिमरण का शिलालेख है । ३. अखण्ड बागिल कन्नड मे बागिलु का अर्थ दरवाजा है । यह दरवाजा एक अखण्ड शिला को काट कर वनाया गया है । ऊपर के भाग मे बहुत ही सुन्दर कारीगरी है । दरवाजे के ऊपर दो हाथी लक्ष्मी पर जल-कलश दुरा रहे है । दरवाजे के दाईं ओर बाहुबली और बाई ओर भरत की मूर्तियां है । ये दोनो ही मूर्तिया दरवाजे की शोभा बढाने के लिए सन् १९३० ई० मे गण्डविमुक्त सिद्धान्तदेव के शिष्य दण्डनायक भरतेश्वर ने प्रतिष्ठित कराई थी। दरवाजे की सीढियां भी उन्हीने बनवाई थी । ४. सिद्धरगुण्डु अखण्ड बागिलु के दाईं ओर एक वृहत् शिला है, जिसे सिद्धरगुण्डु कहते है । इसे सिद्ध शिला भी कहते है । इस शिला पर कई लेख है । ऊपर के भाग में कई पक्तियो मे आचार्यों की चित्रावली है । कई चित्रो के नीचे आचार्यों के नाम भी दिये है । ५. गुल कार्याञ्जबागिल इस दरवाजे पर जो एक बैठी हुई स्त्री की मूर्ति के नीचे शिलालेख है, उससे मालूम होता है कि वह चित्र मल्लिसेहि
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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