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________________ गोम्मट-मूर्ति की कुण्डली शनिफल ___ यह लग्न से नवम है और इसके साथ केतु भी है, परन्तु यह तुलाराशि का है। इसलिए उच्च का शनि हुआ अतएव यह धर्म की वृद्धि करनेवाला और शत्रुओ को वश में करता है। क्षत्रियो में मान्य होता है और कवित्व शक्ति, धार्मिक कार्यों में रुचि, ज्ञान की वृद्धि आदि शुभ चिह्न धर्मस्य उच्च शनि के है । राहु फल यह लग्न से तृतीय है अतएव शुभग्रह के समान फल का दनेवाला है। प्रतिष्ठासमय राहु तृतीय स्थान मे होने से, हाथी या सिंह पराक्रम में उसकी वरावरी नही कर सकते, जगत् उस पुरुप का सहोदर भाई के समान हो जाता है। तत्काल ही उसका भाग्योदय होता है। भाग्योदय के लिए उसे प्रयत्ल नही करना पड़ता है।* केतु का फल यह लग्न से नवम मे है अर्थात् धर्म-भाव मे है । इसके होने से क्लेग का नाश होना, पुत्र की प्राप्ति होना, दान देना, इमारत वनाना, प्रशसनीय कार्य करना आदि बाते होती हैं। *न नागोऽथ सिंहो भुजो विक्रमेण प्रयातीह सिंहीसुते तत्समत्वम् । विद्याधर्मघनर्युक्तो बहुभापी च भाग्यवान् ।। इत्यादि अर्थ-जिस प्रतिष्ठाकारक के तृतीय स्थान मे राहु होने से उसके विद्या, धर्म, धन और भाग्य उसी समय से वृद्धि को प्राप्त होते है। वह उत्तम वक्ता होता है।
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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