SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोन्मट-मूर्ति की कुण्डली बहुत समय तक पुण्य का फल भोग कर अमर कत्ति ससार में फैलाता है। बुधफल __ यह लग्न मे है । इसका फल प्रतिष्ठा-कारक को इस प्रकार रहा होगा लग्नस्थ वुध कुम्भ राशि का होकर अन्य ग्रहो के अरिष्टो को नाग करता है और बुद्धि को श्रेष्ठ बनाता है, उसका शरीर सुवर्ण के समान दिव्य होता है और उस पुरुष को वैद्य, शिल्प आदि विद्याओ मे दक्ष बनाता है। प्रतिष्ठा के ८वें वर्ष में शनि और केतु से रोग आदि जो पीडाएँ होती है उनको विनाश करता है।* गुरुफल ___यह लग्न से चतुर्थ है और चतुर्थ वृहस्पति अन्य पाप ग्रहो के अरिष्टो को दूर करता है तथा उस पुरुप के द्वार पर घोडो का हिनहिनाना, बन्दीजनो से स्तुति का होना आदि बाते है । उसका पराक्रम इतना बढता है कि शत्रु लोग भी उसकी सेवा करते है, उसकी कीत्ति सर्वत्र फैल जाती है और उसकी आयु को भी बृहस्पति वढाता है। गूरता, सौजन्य, धीरता आदि गुणो की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। * "बुधो मूर्तिगो मार्जयेदन्यरिष्ट गरिष्ठा थियो वैखरीवृनिभाज । जना दिव्यचामीकरीभूतदेहाश्चिकित्साविदो दुश्चिकित्स्या भवन्ति ।" "लग्ने स्थिता जीवेन्दुभार्गवबुधा मुखकान्तिदा स्यु ।" ' + गृहद्वारत श्रूयते वाजिह्रपा द्विजोच्चारितो वेदघोपोऽपि तद्वत । प्रतिस्पर्धित कुर्वते पारिचर्य चतुर्थे गुरौ तप्तमन्तर्गतञ्च ।। -चमत्कारचिन्तामणि
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy