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________________ ३७ गोम्मट मूर्ति की कुण्डली १०।२६।३९।५७ लग्न स्पप्ट -- इस लग्न मे गृह शनि का हुआ और नवाश स्थिर लग्न अर्थात् वृश्चिक का आठवा है, इसका स्वामी मंगल है | अतएव मंगल का नवाश हुआ । द्रेष्काण तृतीय तुलाराशि का हुआ जिसका स्वामी शुक्र है । त्रिंशाश विषम राशि कुम्भ में चतुर्थ बुध का हुआ और द्वादशाश ग्यारहवा धनराशि का हुआ जिसका स्वामी गुरु है । इसलिए यह पड्वर्ग बना (१) गृह -- गनि, (२) होरा -- चन्द्र, (३) नवांश - मंगल, (४) त्रिशाग - बुध, (५) द्रेष्काण - शुक्र, (६) द्वादशाश गुरु का हुआ । अव इस बात का विचार करना चाहिए कि पड्वर्ग कैसा है और प्रतिष्ठा मे इसका क्या फल है ? इस षड्वर्ग में चार शुभ ग्रह पदाधिकारी है और दो क्रूर ग्रह | परन्तु दोनो क्रूर ग्रह भी यहा नितात अशुभ नही कहे जा सकते है क्योकि शनि यहा पर उच्च राशि का है । अतएव यह सौम्य ग्रहो के ही समान फल देने वाला है । इसलिए इस पड्वर्ग मे सभी सौम्य ग्रह है, यह प्रतिष्ठा में शुभ है और लग्न भी वलवान है, क्योकि पड्वर्ग की शुद्धि का प्रयोजन केवल लग्न की सवलता अथवा निर्बलता देखने के लिए ही होता है, फलत यह मानना पडेगा कि यह लग्न बहुत ही वलिष्ठ है । जिसका कि फल आगे लिखा जायगा । इस लग्न के अनुसार प्रतिष्ठा का समय सुवह ४ वज कर ३८ मिनट होना चाहिए | क्योकि ये लग्न, नवाशादि ठीक ४ वज कर ३८ मिनट पर ही आते है । उस समय के ग्रह स्पष्ट इस प्रकार रहे होगे ।
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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