SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ' ८ मन्दिर और स्मारक ३१ हीरे की एक-एक छैनी थी । बाहुबली के मस्तक के दर्शन करते जाते थे और आसपास के पत्थर उतारते जाते थे । कन्धे प्रकट हुए, छाती दिखाई देने लगी, विशाल बाहुओ पर लिपटी हुई माधवीलता दिखाई दी । वे पैरो तक आ पहुचे । नीचे वामियो मे से कुक्कुट सर्प निकल रहे थे, पर विल्कुल अहिंसक । पैरो के नीचे एक विकसित कमल निकला । भक्त माता का हृदय कमल भी खिल गया और उसने कृतार्थ और आनन्दित हो 'जय गोम्मटेश्वर' की ध्वनि की । आकाश से पुष्पवृष्टि हुई और सभी धन्य धन्य कहने लगे । फिर चामुण्डराय ने कारीगरो से दक्षिण वाजू पर ब्रह्मदेव सहित पाताल गम्व, सन्मुख यक्षगम्व, ऊपर का खण्ड त्यागदकम्व, अखण्ड वागिलु नामक दरवाजा और यत्र तत्र सीढिया वनवाईं। दरवाजे पर ही एक भव्यात्मा गुल्लकाय देवी की मूर्ति है । इसके पश्चात् अभिषेक की तैयारी हुई । उस समय एक वृद्धा महिला गल्लकायजी नाम की, एक नारियल की प्याली मे अभिषेक के लिए थोडा-सा अपनी गाय का दूध ले आई और लोगों से कहने लगी कि मुझे अभिषेक के लिए यह दूध लेकर जाने दो, पर विचारी वुढिया की कौन सुनता ? वृद्धा प्रतिदिन सवेरे गाय का दूध लेकर आती और अंधेरा होने पर निराश होकर घर लौट जाती । इस प्रकार एक मास वीत गया । अभिषेक का दिन आया पर चामुण्डराय ने जितना दुग्ध एकत्रित कराया उससे अभिषेक न हुआ । हज़ारो दूध डालने पर भी दुग्ध गोम्मटेश्वर की कटि तक भी न पहुचा । चामुण्डराय ने घबरा कर प्रतिष्ठाचार्य से कारण भी घडे 1
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy