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________________ ७२ श्रवणबेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ भट्टारकजी के हाथ में है और वही ठहरने की व्यवस्था करते हैं । भट्टारकजी के मठ से शहर आधा मील दूर पडता है। मठ के समीप ही पाठशाला, कुआ और तालाब है। मठ के उत्तर की ओर चौरासा पहाड पर एक मन्दिर है। इसमें ऋषभदेव से लेकर वासुपूज्य पर्यन्त चार दिशाओ मे १०-१० हाथ ऊची वारह खड्गासन प्रतिमाएं है। दक्षिणदिशा के पहाड पर कोट खिचा हुआ है। एक फर्लाङ्ग ऊपर चढने पर ४२ फीट ऊची भगवान् बाहुबलि की प्रतिमा के दर्शन करके मन प्रसन्न हो जाता है। ____ इस मूर्ति को सन् १४३२ ई० में कारकलनरेश वीर पाडय ने निर्माण कराया था। यहाँ भैरव, ओडेयर वश के राजा प्राय सब जैन थे। शान्तारवश के महाराज लोकनाथरस के शासनकाल में सन् १३३४ ई० मे कुमुदचन्द्र भट्टारक के बनवाये हुए शान्तिनाथ मन्दिर को - उनकी बहनो और राज्याधिकारियो ने दान दिया था। जब कि श्रवणवेल्गोल की मूर्ति विन्ध्यगिरि के पाषाण मे से काट कर बनाई गई है, कारकल की विशाल मूर्ति, इस पहाडी से भिन्न प्रकार के पत्थर मे से बनाकर, पहाडी के ऊपर दूर से लाकर विराजमान की गई है। कन्नडी की कविता 'कारकल गोम्मटेश्वर चरित्र' मे वर्णन है कि कारकल के गोम्मटेश्वर की प्रतिमा को ले जाने के लिये एक २० पहियो की लम्बी गाडी बनवाई गई थी और इसको ऊपर ले जाने के लिए पूरा एक महीना लगा था । आज इसका अनुमान लगाना भी कठिन है, कि यह सब कैसे
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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