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________________ . (६४) ये सब मिलकर २२ भेद एकेन्द्रिय के होते हैं. (४५) प्रश्नः विकलेन्द्रिय के ६ भेद किस तरह से ? - ... उत्तरः वेइन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २ पर्या सा, तेइन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २ पर्याप्ता, चोरेन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २. पर्याप्ता तीनों के मिलकर ६ भेद हुये. (४६) प्रश्नः तिर्यच पंचेन्द्रिय के २० भेद किस तरह से ? उत्तरः उसकी पांच जात हैं १ जलचर २ स्थलचर ३ उरपर ४ भुजपर व ५. खेचर. जलचर के चार भेद १ जलचर समूर्छिम का अप: र्याप्ता २ जलचर समूर्छिम का पर्याप्ता ३ . जलचर गर्भज का अपर्याप्ता ४ जलचर गर्भज का पर्याप्ता इस तरह से प्रत्येक के चार २ ..... भेद हैं सब मिलकर २०. भेद तिर्यच पंचेंद्रिय के होते हैं. (४७) प्रश्नः तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद में संज्ञी के कितने भेद व असंज्ञी के कितने भेद ? . .. उत्तरः १० संझी के (५.गर्भज के अपर्याप्ता व ५ पर्याप्ता) व १० असंज्ञी के ( ५ समूर्छिम के अपर्याप्ता व ५ पर्याप्ता) ४८) प्रश्नः तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद में अपर्याप्ता के कितने भेद व पर्याप्ता के कितने भेद ? । . उत्तरः १० अपर्याप्ता के गर्भन के व ५ समू
SR No.010487
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year1914
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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