SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५२) . उत्तरः नव (३ कर्मभूमि व छ अकर्मभूमि ) (५८) प्रश्नः लवण समुद्रमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः ५६ (अंतरीपा) . (५६) प्रश्नः धातकी खंडमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं? उत्तरः १८ (६ कर्मभूमि व १२ अकर्मभूमि) (६०) प्रश्नः कालोदधि मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः नहीं है. . . (६१) प्रश्नः अर्थ पुप्फरमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः १८ (६ कर्मभूमि व १२ अकर्मभूमि) (६२) प्रश्नः वाइद्वीप बहार मनुष्य के कितने क्षेत्र है? उत्तरः नहीं है. . . . (६३) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्य किसे कहते हैं ? उत्तरः मनुष्य सम्बन्धी अशुचीके स्थानमें उत्पन्न होवे उनको समर्छिम मनुष्य कहते है. .. (६४) प्रश्नः ऐसे अशुचीके स्थानक कितने हैं ? और कौन.२ से है? • उत्तरः मनुष्यक १ मलम. २ मत्रमें ३ कफग ४ लीटमें ५ वमनमें ३ पित्तौ ७ पीपमें (रसीमें) ८ खूनमें है वीर्य में १० वीर्यादिक के मूके हुवे पुद्गल फिर भीज जावे उसमें ११ मनु प्यक जीव रहित क्लेवरमें १२ सं पुरुषक संयोगमें, १३ नगरकी मोरीमें व १४ सर्व मनु प्य सम्बन्धी अशुचीके स्थानको समूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं.
SR No.010487
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year1914
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy