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________________ ( ३५ ) (१५) प्रश्नः पुण्य, पापके पुद्गल रूपी हैं या श्ररूपी ? उत्तरः रूपी हैं. मगर उनको अपन देख नहीं सक्ने. (१६) प्रश्न : पुण्य पाप अथवा शुभाशुभ कर्म पुद्गल को कौन जान व देख सक्ते हैं ? उत्तरः केवलज्ञानी केवली भगवान. (१७) प्रश्नः पुण्य के उदयं से जीव कौन २ सी गति में जाते हैं ? उत्तर: देवगति में या मनुष्यगति में. (१८) प्रश्न: मनुष्यगति में कई जीव नीच गोत्र में उप जते हैं वह किससे ? उत्तरः पाप के उदय से. (१६) प्रश्न: जीव तिर्यंच गति में किससे उपजते हैं ? उत्तरः पाप के उदय से. (२०) प्रश्नः तिर्यच गति में भी कई जीव शातावेदनीय व दीर्घायुष्य पाते हैं वह किस कारण से पाते हैं ? उत्तरः पुण्य के उदय से. (२१) प्रश्नः जीव नर्कगति किस कारण से पाते हैं ? उत्तरः पाप के उदय से. " (२२) प्रश्नः नर्क के अनन्त दुःख भोगते हुवे जीवों के पास “शुभ कर्म पुद्गल" याने पुण्य है या नहीं ?
SR No.010487
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year1914
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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