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________________ . .... ... तिह, जग छई चंद्रिका कीरति, चिहन चंद्र चिंतत शिवगामी ॥ वन्दा चतुर चकोर चन्द्रमा चन्द्रवरन चंद्रप्रभस्वामी ।। इसी तरह. और मी च विशति स्तुति कती उत्तम की गई है इसको हमारे ... पाठ दही विच रें। - इस कवि? यज्ञमें हिंसा निषेधार्थ कैसे अनमोल बोल रहे हैंकहै. पशु दिन सुन यज्ञके करैया मोहि, ..... होमत हुताशनमें कौनसी घडाई है। स्वर्गसुख मैं न चहौं "देह मुझे" यौँ न कहौं, - घास खाय रहौं मेरे यही-मन भाई है ।। जो तू यह जानत है वेद घौं वखानत है, . ... .. 'जग्य जलौ जीव पाव-स्वर्ग:सुखदाई है। डा क्यों न बीर या अपने कुटुंब ही को, .... . मोहि जिन जारै जगदीश की दुहाई है । प्रिय पाठकवृंद ! कविको नव यह सरा, स्युक्ति यज्ञ में हिंसाका निषेध, अन्यमतावलम्बि देखते हैं तो दांतों तले उँगली दवा देते हैं । वप्त इन कन्युत्त के दो ही ग्रंथोंकी . वागी देकर हम आगे बढ़ते हैं। हम. स्वर्गीय कविवर यान्तरायनीकी कविताकी अन · उत्तमता बतायेंगे। हम उदाहरण के लिये इनका धर्मविलास पेश करते हैं। वास्तवमें हिंदी. संपारमें यह एक उत्तम पद्य ग्रंथ है । इसकी मी थोड़ी का नो भव्य पाठकोंके निमित्त पेश करता हूं। ज्ञानीका वचःणआपने छप्पयमें इस प्रकार किया है धाम तजत धन तन्तत त गजवर तुरंग रथ। :, अरि तजत नर तजत, तजत सुवंपति प्रमाद पथं ॥ अपि अजत अघ भजत, भजत संथ दोष भयंकर । मोह तत मन तजत सजत दल कर्म सत्रुवर ॥ अंरि चट चट्ट सब कट्टकरि, पट्ट पह महि पट्ट किय। करि अहल? भवक? यदि सट्ट सह सिव सह लिए: तजत अंग अरधंग करत थिर; अंग पंग-मनः । लेखि अभंग सरवंग, तजत बचननि तरंग मन ।:: जित अनंग थिति. सैलसिंग, गहिं भावलिंग पर। तप तुरंग चढ़ि समा रंगरंचिं, करम जंघ करि । - . . .. 17 . ....
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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