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________________ : स्नान विधाय विधिवत्कृतदेवकार्यः । संतर्पितातिथिजनः सुमनाः सुवेषः । आप्तवतो रहसि भोजनकृतथा स्यात् .. ... सायं यथा भवति भुक्तिकरोऽभिलाषः ॥ (यश) ..... : । अर्थात स्नानको करके विधिके. अनुपार निन्द्रा को कर अपने अतिथिनों को संतुष्टकर, निराकृलचित्त होकर अच्छे वेषको धारणकर अपने.. हित नन गुरु आदिकोंसे युक्त एकान्तमें यदि भोजनको करै तो संध्याके समयमें उसकी भोजन करने में रुचि होती है। ...... चारायणो निशि तिमिः पुनरस्तकाले .............. मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते। .... ... भुक्ति जगाद नृपते मम चैष सर्गः ... ... .. :: स्तस्याः स एव समयो क्षुधितः यदेव ॥. ....:. अर्थात् हे राजन् ! चारायण नामक वैद्यने रानिमें मोनन करनेके लिये कहा है तथा तिमि नामक वैधने संध्याकालमें, धिषण नामक वैद्यने दोपहरके समयमें, तथा “चरक: नामक वैद्यने सुबह के समयमें भोजन करनेको कहा है। लेकिन मेरा तो इस विषयपर ऐसा मत है कि जिसको जब भूख लगे उसी समय भोजन करे। . ... अधिगतसुखनिन्द्रः सुप्रसन्नेन्द्रियात्मा। . . .. सुलघुजठरवृत्ति(क्तपक्तिं दधानः॥ . . श्रमभरपरिखिन्नः स्नेहसंमर्दिताः ।। ...": सवनग्रहमुपेयाद्भपतिमंजनाय ॥ . अर्थात-प्राप्त किया है सुखनींदको जिसने, अच्छी तरह प्रसन्न हैं इन्द्रिय, आत्मा मिसकी, तया बहुत थोड़ी है जठरकी वृत्ति (क्षुधा) जिसकी; भोजनको पचाता हुआ ऐसा और बहुत श्रमसे खिन्न ऐसा भूपति, तेलको शरीरमें मईनकर स्नान करने के लिये स्नान : गृहको नावे। . : आदौ स्वादु स्निग्धं गुरु मध्ये लवणमम्लमुपसेव्यम् । : रुक्ष द्रवं च पश्चान्न च भुक्त्वा भक्षयत्किचित् ॥ ....... भोजनके आदिमें स्वादयुक्त, घृत्युक्त भारी भोजन करना चाहिये। बीच में लवणयुक्त आम्लेके रससे युक्त मोजन करना चाहिये, पीछेसे रुक्षाहार करना चाहिये, तथा • मोमन करके कुछ नहीं खाना चाहिये। ....... शिशिरसुरभिर्भश्वातपाम्भः शरस, क्षितिपजलशरहेमन्तकालेषु.चैते। कफपवनहताशा संचयं च...प्रकोप ।। .
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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