SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. ... ... .. .. a . . ८ ......... . लताभिरतिरमणीये, नरखंचरामराणां मिथः संभोगलक्ष्मीमिव दर्शयति निखिल वनवनानी श्रियमिवादाय जातजन्मनि, रोध्रवराग़वैध्ययनीरन्धितकेतकीरजःपटलंनिमलितंकपोलदर्पणेनवि विधकुसुमदलविनिर्मितललामकर्मणा कुटनकुड्मलोल्यणमल्लिकानुगतकुन्तलकलापेन तापिच्छगु. लुच्छविच्छुरितशतपत्रीसकसनद्धचिकुरभङ्गिना मरुषकोद्भेदविदर्भितदमनकाण्डशिखंडितकेशमा शेन प्रियालमंजरीकणकलितकर्णिकारकेसरविराजितसीमन्तसंततिना चम्पकवितविकचकच(काञ्च)नाराविरचितावतंसेन माधवीप्रसुनगर्भगुम्फितपुन्नागमालाविलासिना रक्तोत्पचनालान्तरा लमृणालवलया कुलशकोटेन (1) सौगन्धिकानुवद्धकमलकेपूरपर्यायिणा, सिन्दूरवारसरकुसुन्दरकदलीप्रवालमेखलेन शिरीषवशवाणकतनघालंकारचारुणा मधुकानुविद्धवन्धूकधंतनूपुरभूषः णेन अन्यासु च तासु तासु कामदेवकिलिकिञ्चितोचितासु क्रीणांसु वद्धानन्देन सुन्दरी जनेन सह रमन्ते कामिनः" . ( यशस्तिलकचम्पू.१ आश्वास) भो काव्यरसिकगण! यह चम्पूकी वनक्रीड़ाके वर्णनका कुछ थोड़ासा अंश आप लोगों की सेवामें भेट है। जिससे कि आपको भलीभांति समझमें आसकता है कि चम्पू अद्वितीय ग्रंथ है। उपरिलिखित हृयगद्य कविने कैसी अनुपम अनुप्रासमाला पहनाई है। काव्य पाठक न्दोंको यह तो विदित ही होगा कि उपमा, विरोध, श्लेप, परिसंख्या आदिको रचना तो.. प्रत्युत सरल है किन्तुं अनुमाप्सोका बनाना उच्चतम भूषण है। कादम्बरी तथा" माघऋवि. के शिशुपालंबधमें ऐसी अनुप्रासोंका अद्भुत छंटाटोप नहीं पाया जाता । इस उपयुक्त हृधः । गद्यमें पूज्याचार्यने नैसी अनुपम और अद्वितीय अनुप्रासमाला पहिनाई है उसी प्रकार प्रियकाव्यरिसकवृन्दोंके आस्वादके लिये माधुर्यगृणः कैसा पंथ पद्यमें अद्भुत मरा हुआ है। जहातक आप काव्यसागरमें गोते लगायेंगे आपको यह बात अच्छी तरहसे ज्ञात हो जायगी कि-माधुर्यगुणं, उत्तमतासे जैन, काव्योंमें ही पायाजाता है । शायद मैं इसका कारण : जैन काव्योंके रचयिता भाचार्यगणोंकी क्षमा, अहिंसा तथाः वैराग्य समझता है। यह बात विना दृष्टांतके शायद आप लोगों की समझमें नहीं आवे । हम प्रसिद्ध भैनेतर काव्य काव्यप्रदीप" के दो श्लोक इस बातकें निर्णयके लिये देंगे "स्वच्छन्दोच्छलदच्छकच्छकुहरच्छातेतराम्युच्छटा मर्छन्मोहमहर्षिहर्षविहितस्नाहिकाहाय वः ॥ भिन्यादुधदुदारदर्दुरदरी दीर्घादरिद्रद्रुमद्रोहोद्रेकमयोमिमेदुरमदा मन्दाकिनी मन्दताम् ॥ ......" .... : भा र काव्यमदीप प्रथमः उल्लास ) TOTO प्रियम
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy