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________________ बाहुल्यता होगी। सारांश कालमें गुण और पर्यायें होती हैं अतः वह द्रव्य सिद्ध होता है। . यदि काल पदार्थ न होता तो निमित्तके बिना पदार्थोंकी हालत न बदलती उनमें उत्पाद व्यय नहीं होता । जो पदार्थ जैसा है वैसा ही रहता जो आम हरा है वह हरा . ही रहता पीला न होता न सड़ता और न छोटा बड़ा होता। - हमारे श्वेताम्बर बंधु इस अतीव आवश्यक द्रव्यका अस्तित्व नहीं मानते । परन्तु नव वे गति स्थिति स्थानके हेतु, निमित्त भूत धर्म अधर्म आकाशको वांछते हैं तो कालके . बिना भी काम नहीं चल सक्ता परिवर्तनाके हेतु भी निमित्त होना ही चाहिये। ... ब्राह्मण धर्म शास्त्रों में भी कालका उल्लेख है । और कहा है- .. चौपाई.-सिरजत काल सकल संसारा। करत काल तिहुँ लोक सँहारा॥ - सब सोवत जागत है सोऊ । काल समान बली नहिं कोजा . यह कथन जैन मतके स्याद्वादसे सम्यक् सिद्ध होता है। अर्थात् काल पदार्थ संसारकी नवीन पर्यायों को उत्पन्न कराता है और प्राचीन पर्यायोंको लय कराता है। परन्तु यदि कोई यह समझ जावे कि काल ही उत्पन्न करता है, काल ही नष्ट करता है तो यह . "ही" लगानेसे एकान्तवाद हो जाता है और वह दूषित है ॥ कहा भी है___ . द्रोहा-पद स्वभाव पूरव करम, निच्चय उद्यम काल । पक्षपात मिथ्यात सब, सर्वाङ्गी शिवचाल ॥१॥ कालके संबंधमें एक बड़ी भारी शंका यह होती है कि काल पदार्थ जब लोक मात्रमें है तो वह भलोकाकाशको क्यों कर परिवर्तित करता है । इसका समाधान कुन्द... कुन्द स्वामीने बड़ी कड़ी युक्तियोंसे किया है उनमेंसे एक मोटीसी यह है कि जिस प्रकार शरीरके मध्य भागमें मैयुन होता है और उसका अनुभव सर्वांग होता है । उसी प्रकार - काल भी आकाशके मध्यमें रहके संपूर्ण आकाशको वर्ताता है। . हमारे ऋपियोंकी कथन शैली ऐसी सुन्दर है कि वार वार द्रव्यानुयोगके शास्त्रों का कथन चितवन करनेसे मरूपी काल द्रव्य भी स्पष्टतया समझमें आने लगता है। . . . ४-अब-हम चौथे पदार्थ पर माप लोगोंका चित्त झुकाया चाहते हैं । आप देखिये पुस्तक टेबिल पर रक्खी है, टेबिल प्लेटफार्म पर है, प्लैटफार्म पृथ्वीपर है, अर्थात् पदार्थोंमें - आधार आधेय वा क्षेत्र क्षेत्रिय भाव है। : . . : .. नित प्रकार जीव पदार्थ अपनेको और सकल पदार्थोंको जाननेवाला 'ज्ञान' इस परमधर्मसे सिद्ध है । अपनेको और दूसरोंको वर्तानेवाला काल पदार्थ 'वर्तना' इस परम धर्मसे सिद्ध है। '. उसी प्रकार अपनेको और दूसरे समस्त पदार्थोंको क्षेत्र देनेवाला. अवगाहना परमधर्मवाला
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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