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________________ : .: (निवास) देनेवाला । सवैयापक यदि कोई पदार्थ न हो तो ये वायु पृथ्वी आदि विशाल परिमाणधारी पदार्थ : कहाँ समावेगे । इसके अतिरिक्त एक बात यह भी है कि पक्षी जिप्त समय पृथ्वीसे तथा वृक्ष परसे उड़कर दूसरे स्थान पर जाता है उस समय वह किप्त आधार पर गमन कर रहा है ?। इसको विचारमें से यह पता अव.. श्य लग जायगा। उस समय वहां पर उसके लिये कोई पदार्थ आधार है । यदि इसके लिये वायुको ही उसका आधार बताया जाय तो वही प्रश्न. पुनः उपस्थित होगा कि वह वायु' कहां मरी हुई है ? | मनुष्योंके चलते समय पैर जिस प्रकार पृथ्वीपर स्थिर हैं उसी तरह उनके शरीरका ऊपरी भाग. किस स्थानमें ठहरा हुआ है । इन शंकाओंको निराकरण करने के लिये आकाशद्रव्यको अवश्य मानना पड़ेगा। यहीं आकाश सर्व द्रव्योंको अवकाश देता है और वह स्वयं स्वप्रतिष्ठित है । क्यों कि आकाशद्रव्यको भी अवकाश देनेवाला उससे बड़ा अन्य कोई द्रव्य नहीं है । अतएर यह सर्वव्यापक है। ऐसा कोई स्थान नहीं. जहां आकाश न हो । जसं पोल दिखाई देती है। वह मी. आकाश. ही है। यह बात नों कही जाती है कि !" इस जगतमें भी पदार्थ भरे हुए हैं."। यह भी आकाशके लिये ही है। क्योंकि जगत सर्व द्रव्यों का समूह ही कहलाता है अतएव सर्व पदार्थोका निवास : आकाशमें ही हो सकता है । यद्यपि यह असंख्यात प्रदेशी है किन्तु अनगाहन शक्तिके: कारण अनन्त जीव तथा :अनंत पुग्छ एवं धर्म, अधर्म, द्रव्य इसमें समा जाते हैं । जैसे जलसे पूर्ण मरे हुए कलशमें यदि एक सेर, शकर और डाल दी जाय तो वह भी उसमें समा नायगी । फिर मी यदि सौ. सुइयां और उसमें डाल दे तो वे भी उसमें आ जायगी। इस लिये सम्पूर्ण द्रव्योंको भवकाश देनेवाला सर्वव्यापक आकाशद्रव्य अवश्य है और उसमें.. जहां तक: धर्म, अधर्म, पुद्गलांदि द्रव्ये प्राप्त होती हैं वहीं तक, जगत है जिसको दूसरेः. शब्दोंमें कोक या लोकाकाश कहते हैं उसके बाद अलोकाकांश: है । यहः सप्रमाण युक्ति योंके द्वारा सिद्ध हो गया । . इस तरह जीवद्रव्य तथा चीर मनोवंद्य प्रमाणोंसे सिद्ध हो गई। अस्तु । ..अब हमको यह और अनुसंधान करना है कि आकाशद्रव्य जिप्त प्रकार द्रयों के लिये अवकाश देता है। जिससे कि उनकी सुगवस्थिति है तथैव पत्येक पदार्थको : परिवर्तन करानेवाला मी कोई द्रव्य अवश्य होना चाहिये । क्योंकि यह हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि एक वस्त्र यदिः किती सुरक्षित स्थानमें मी. रखदे तो भी वह कुछ दिन पश्चात अपने प जीर्णशीर्ण होकर भस्म हो जाता है । वृक्षपर लगा हुआ हरा आमका फल कुछ दिन : पश्चात क्यों पीला हो जाता है । छोटा बच्चा कुछ दिनोंके अनन्तर क्यों बड़ा हो जाता है. भादिः । .:... ... .
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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