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________________ . ... . . .. . HI.... ...... समुदेति विलयमृच्छतिभावो नियमेन पर्ययनयस्थः। .. नो देति नो विनश्यति भावनया लिंङ्गितो नित्यम् ॥ . अर्थ-पदार्थ पर्यापनयकी अपेक्षासे उत्पाद विनाशको प्राप्त होता है । द्रव्यार्षिक 'नयकी अपेक्षा पदार्थ नित्य ही है। । दुसरे जो यह हेतु दिया था कि सत्य अर्थ क्रियासे आत. अर्थ क्रियाक्रम योगपद्यसे क्रम योगपद्य नित्यमें रहते नहीं अतः सत्य रूप. हेतु विपक्षमें न रहनेसे साधु हैं सो हम इसका उल्टा यी कह सकते हैं यानी सत्त्व अर्थ क्रियासे व्याप्त है, अर्थ क्रियाक्रम योगपद्यसे व्याप्त है और क्रमयोगपद्य क्षणिकमें रहता नहीं अतः विपक्षके समान पक्षों मी हेत. नहीं रहता । इस लिए हेसु मसिद्ध, दोषसे दुषित है क्योंकि मिसत्ता निश्चितोऽसिद्ध यानी जिसकी सत्ताका अमाव हो या. सत्ताका निश्चय न हो उसे प्रसिद्ध कहते हैं सो यहां सत्व हेतु पक्षमें न रहनेसे असिद्ध है। इस प्रकार वैशेषिक, नैयायिक, सांख्य, बौद्ध, इनकी पदार्थ संख्याका खंडन किया । अब जैनियों के स्वीकृत जीवादि ६ पदायों का क्या क्या सामान्य विशेष स्वरूप है और कैसे सिद्धि है यह बतलाते हैं ___ युगलात्मक संसारमें निरपेक्ष दृष्टिसे हम देखते हैं तो संसारका सार युरम. ही दिखलाई देता है। जहां देखते हैं युग्मकी ही भरमार है। गौण या मुख्य, स्त्री-पुरुष, पुत्र-पुत्री; लड़का-लड़की, सम्यक्त्म-मिथ्यात्वा एकान्तवादी–अनेकान्तबादी, उल्टा-सीधा, मला-बुरा, ऊंच-नीच नितं तरह इन युग्मोंका आधिपत्य है उसी तरह संसार दो ही पदार्थ दिखलाई : एक जीव है और दूसरा अनीव । इसे युग्ममें संसारके.समी युग्म आकर मिल जाते हैं। . .. . . .. ..... जीव शब्दकी व्युत्पत्ति जीवति-प्राण त् धारयति' नो प्राणों को धारण करें इस प्रकार की गई है । जिस तरह जीवदा संसारी मुक्तास्मा इन दो भेदवाला है, उसी तरह ...' भनीयके पांच भेद है-१. पुद्र, २. धर्म, ३ अधर्म, ४. आकाश, ५ काल. अब क्रमसे पहिले जीवकी सिद्धि करते हुए पुद्गलादिकी आवश्यकता और. - सिद्धिका निरूपण करेंगे." .- . : ... जीवद्रव्यको आवश्यक्ता और सिद्धिः । जीवके पूर्वोक्त दो भेदोंके अतिरिक्त और मी एकेन्द्री; दोइंद्री, तेहन्द्री, चौइन्द्री, पंचेंद्री ये पांच भेद हैं। एकेन्द्रीके पृथ्वीकाय, अप्लाय, वायुकाय, तेजकाय, वनसतिकाय ये पांच भेद हैं । चनस्पतिके दो भेद हैं-साधारणब०, प्रत्येकव०, प्रत्येकके संप्रतिष्ठित . . .. .. . ... .. . ' . .. . . .':. ". . .....
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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