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________________ उनका जो संक्षेपसे कहना है उसे संग्रह कहते हैं। अतः संग्रहनयकी अपेशाले एकता सिद्ध, हो जायगी अतः सात पदार्थ मानना चाहिये। उक्त कथन भी समुचित नहीं है क्योंकि एक पद पाच्य होनेसे एकता की ही प्रतीति होती है, ऐसा नियम नहीं है क्योंकि सेना वन आदि एक पद वाच्य अनेक पदार्थ देखे जाते हैं । यहाँ ऐसी शंका करना कि सेना बनादि एक पाद वाच्यसे संबंध विशेषयुक्त एक की ही प्रतीति होती है। वह सम्बंध संयुक्त संयोगाल्पीयस्त्व लक्षणवाला कहा जाता है। संयुक्तका जो नग्न्तर्य सम्बन्ध यानी संयुक्तका जो निकटवर्तिक सम्बन्ध उसे संयुक्त संयोगासीयस्त्व कहते हैं । यह कहना मी युक्ति सम्मत नहीं है। क्योंकि सेना वन आदि शब्दसे सबका ज्ञान मनुष्य घोड़ा आदिमें ही होता है । वन शब्दके कहनेसे प्रथक् । पेड़ोमें ही होता है । सम्बन्ध विशेषमें जो बाप ज्ञान बताते हैं सो नहीं होता अतः एक पद वाच्य होनेसे एकताकी सिद्धि नहीं होतकी । अन्यच्च एक पद वाच्य होनेसे यदि एकताकी सिद्धि की जाय तो एक गोके द्वारा वाच्य जो ११ श्ब्द हैं उन सभीकी एकता माननी चाहिये। . उक्तं च-वाचि, वारि, पशोभूमौ, दिशि, लोनि,पवौ, विवि विशिखे, दीधित्तो, दृष्टावेकादशसु गोमतः॥ . गोशब्द वचन, पानी, पशु, भूमि, दिशा, रोम, बन, आकाश, बाण, किरण और । किरण इन ११ अमिधेयों में हैं। एवं एक य शब्दके वाच्य त्याग, नियम, यम, वायु, धाता, पाता रक्षमा इन छहोंमें मी एकता होनी चाहिये। (शङ्काकार ) वचन पशु आदिका वाचक गोशब्द, त्याग, नियम, यम आदिका वाचक य शब्द मिन भिन्न ही हैं फिर एक पद धाच्यत्व ही यहां नहीं रहता तो एकता कैसे। (उत्तर ) यह भी आपका कहना ठीक नहीं, ऐसे हम मी वहमक्ते हैं कि पृथ्वी जल आदिका वाचक अलग अलग ही द्रव्य शब्द है अतः एक पर वाच्यता न होनेसे , एकता नहीं हो सकती। . . संग्रह किये जाय अनेक पदार्थ जिस शब्दसे ऐपा शब्दात्मक संग्रह और एक प्रत्ययसे अनेक पदार्थ ग्रहण किनाय ऐसा · प्रत्यात्मक संग्रह और अर्यामक इन तीनों संग्रहोंसे द्रव्यको एकता सिद्ध नहीं की जासको । द्रव्यको ९ संख्या मानना मो संख्यापास है क्योंकि इन ९ द्रव्यों का बीर पदलमें शान्ताव हो जाता है।
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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