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________________ जो कि किसी दिन स्थानको जाना चाहता है. और मार्गको परिक्षान न होने के कारण एकत्रित मनुष्यों से पूछता है कि अमुक स्यानको जानेके लिए कौनमा मार्ग है लेकिन समूहगत प्रत्येक व्यक्ति उसे अभिषितस्यान जाने के लिए भिन्न भिन्न ही मार्ग बतलाता है। अब या तो वह विचारा मनुष्य मानेका विचार ही छोड़ देगा या जावेगा मी तो सन्देहातुमरगझे अभीष्ट स्यानको नहीं पहुंचेगा / .............. ... ___ संसारमें अग अग धर्मोपदेशक एक सुखकै मागको पाने के लिए अपनी भिन्न भिन्न धर्मोपदेश रूपी टिकिट ( Ticket ) देका स्वकहरत सिद्धान्त गाड़ियोम बैठाकर इष्ट मार्ग प्राप्त करनेका दावा करते हैं अतः परीक्षाप्राधान्य मनुष्यका कर्तव्य है कि पहिले वह अपने भानेके मार्गकी अच्छी तरह परीक्षा करलें जिससे कि अंगाडी उसे अनिष्ट स्थान पर पहुंचकर दुःख न प्राप्त करना पड़े। ................ अब हमें पदार्थ विनिश्चायक उपायोंका यहां मी आत्रेय लेना चाहिये / प्रत्येक पदार्थके निश्चपके लिए नीन उपायों की प्रथम ही आवश्यकता हुआ करती है-एक उद्देश, . द्वितीय क्षण निर्देश, तृतीय परीक्षा ......... .... . इस लेखमें षट् दपकी आवश्यकता और-सिद्धि बतलाने तथा सिद्ध करने के लिए: पूर्ण प्रयत्न किया गया है यही इस लेखका उद्देश है / पीसा व लक्षण निर्देशका बागे.. खुलासा किया जायगा। . .::. .............. . षट् द्वयों के नाम निर्देश और परीक्षा के पहिले न्यका सांभाय लक्षण क्या है . यह विचारना चाहिये / आचार्योने द्रव्यता लक्षण " सपलक्षणं" या गुगायत्रद्न्यं ".. ऐसा कहा है यहां कोई ऐसी शंका गरे कि लक्षण तो अाधारण हुआ करता है और लक्षण द्वयक होनेसे अवश्य ही लक्ष्य द्वयकी सिद्धि होगी सो उसका यह कहना..मी समु.. वित नहीं है क्योंकि एक ही लक्ष्यका यहां प्रकारान्तरसे उक्षम किया है।. . . सट्टयरक्षण : . " गुणपर्ययवन्यं / इन लक्षणों का यही तात्पर्य है कि.. द्रव्य नित्यानित्यात्मक है / सतका लक्षण उत्पादन्यत्रौव्ययुक्कं सतअर्थात् जिसमें उत्पाद ( उत्पत्ति ) यय (नाश ) धौम्य (नित्यता ). ये तीनो ही ६उसे . स्त. कहते हैं। श्रौव्य नित्यात्मक है और टत्पाद व्यय अनित्यात्मक है / चेतन वा अचेतन . पदर्थ अपनी अपनी चेतनत्व. बा. अचेतनत्व जतिको न छोड़कर अंतरङ्ग बहिन कारणों से जो दुसरे पदार्पके स्वलाको प्राप्त करे उसे उत्पाद कहते हैं जैसे कि मिट्टी को घटं अन्य रूप आकार हो जाता है, व्य का अर्थ पूर्व पर्यायका चला जाना है जैसे कि घटकी उत्पत्ति : मृतपिण्डके आकाएका प्रभाव है / धौम उसे कहते हैं जो कि व्यय उत्पाद कर रहित है .श्रौव्यः / २०४की व्युत्पत्ति इस तरह की गई है कि श्रुति स्पिरि मति : भ्रास्य मावः क य वा प्रौल्य,
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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