SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - चित्राला के इलोक दें देना ठीक है । जैसे---... "ककाकुकङ्ककेकाकेकिकोकैककुः कः। - अकुकौका काककाकडकाळकुकका कक्कु । ........... ... ता य मात्र-यहां पर कवि समुद्रको स्वाभाविक वर्णन करते हैं कि-जत्रा, मयूर, चावाक, तथा जलके कांकों का रक्षक, और विष्णु का निवास स्थानभूत समुद्र हैं। तितोसितातु तेऽतीता तेतृतोती तितोलत : .. . .ततोऽतांति ततौ लौते तत ताते ततो ततः ॥.. भाव मात्र-विशिष्ट पूनाके योग्य ! यकीयं ज्ञानवृद्धि हेत, ज्ञानावरणादिकों के नाशक ! अपरिग्रहसे महान् ! ज्ञानवृद्धि प्राप्त ! हे त्रैलोक्येश्वर तुम्हारा जाने विस्तीर्ण है। इस प्रकार चित्रके एकाक्षरी, दो अक्षरी मेद होते हैं। ....... . अब मैं आप लोगोंका समय ज्यादा न लेकर नैषधीय चरित्र, और धर्मशांम्युम से मिलान काके लेख समाप्त करूंगा ! ...... धर्मशर्माभ्युदय महाकायके कर्ता श्री हरिश्चन्द कवि है। वाण कविने स्वरचित .हर्ष चरितमें इनको. प्रारम्पमें स्मरण किया किया हैं। .. ... .. पदन्धोज्ज्वलोहारी तवक्रमस्थिति। - महारहरिचन्द्रस्य गद्यवन्यो नृपायो । इस प्रकार निष्पक्षपाती अझैन कवियों ने भी इनकी मुक्तकण्ठसे प्रशश की है. इनकी अनोखी सुझ, कल्पना चातुर्य बहुत गंभीर है, पदलोलिय और अर्थगौरव कुट कर भर दिया है । यथा-राजा महासेनकी विद्या प्रशंसाको कति वर्णन करते हैं। "तत भुताम्मोनिधिपारदृश्वनः विशङ्कमानेवपराभवं तदा। ..विशेष पाठाय विधृत्य पुस्तक करान, सुंश्चत्यंधुनापि भारती । ...अर्थात-शास्त्र समुदके परगामी रानासे परामवकी शंका करती हुई . भारती-वाणी) विशेषपाठ, याद करने के लिये अा मी पुस्तकको नहीं छोड़ती है। · माव-मारतीके हस्तमें पुस्तक है, इसीपर कविने उत्प्रेक्षा की है कि : राना विद्या पारंगत है, अतः मुझे शास्त्रार्गे : महरादे इसलिये पुस्तक धारण की हैं। '. अथवा, रान चौदह विद्याभोंमें अत्यन्त निपुण है, इससे कविने यह भी द्योतन किया है। श्रीहर्ष कविये कवि श्रीहरि पण्डितले सुत्रं है, और इनकी मातांका नाम मामलोती है। E
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy